
सुयश मिश्रा (पत्रकार, शोधार्थी)
लखनऊ। नाग का एक स्वभाव होता है। उसे कितना भी दूध पिलाओ लेकिन मौका मिलते ही वह डसने से बाज नहीं आता। खुद को नेवला बताने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के अंदर नेवला नहीं नाग वाले गुण ज्यादा मिलते हैं।
यूपी के प्रतापगढ़ के रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या 80 के दसक में राजनीति में आए। लोकदल से शुरुआत के बाद 1991 से 95 तक जनता दल में रहे। इस बीच वह कई बार चुनाव लड़े, लेकिन जीते नहीं। मायावती के पहली बार सीएम बनते ही उन्होंने बसपा ज्वाइन कर ली। 1996 में डलमऊ सीट से पहली बार वह विधायक चुने गए। वहीं 2002 में फिर से इसी सीट से चुनाव जीते और बसपा सरकार में मंत्री बने। साल 2007 में जब उत्तर प्रदेश में बसपा की लहर थी, पार्टी ने 403 में से 206 सीटें जीती थीं तब पडरौना से स्वामी लहर में भी अपनी ही सीट नहीं बचा पाए थे। फिर भी बसपा सुप्रामों ने हारने के बाद भी स्वामी को कैबिनेट मंत्री बनाया।
2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले स्वामी ने बसपा सुप्रीमो को दौलत की बेटी बताकर पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। साल 2017 में जब बीजेपी को प्रदेश में अप्रत्याशित 325 सीटें मिली थीं तब भी स्वामी प्रसाद मौर्या के बेटे उत्कृष्ट मौर्या ऊंचाहार से चुनाव हार गए थे। 2017 से लगभग 5 साल बीजेपी में मंत्री रहने के बाद 2022 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने बीजेपी को दलित विरोधी पार्टी बताकर सपा ज्वाइन कर ली। सपा ने स्वामी को खूब तवज्जो दी, उन्हें स्टार प्रचारक बनाया लेकिन खुद स्वामी फादिलनगर से अपनी सीट नहीं बचा पाए। फिर भी सपा ने उन्हें एमएलसी बनाकर उच्च सदन भेज दिया। अब समाजवादी पार्टी में वह कितने दिन तक रहेंगे ये देखना बाकी है। बहरहाल खुद को नेवला बताने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या जिसके साथ सत्ता में रहे, मलाई काटी उसी को अंत में छोड़कर दल बदल लिया। चाहे फिर बसपा हो, बीजेपी हो या फिर जनता दल। यही उनका अब तक का राजनीतिक सफरनामा रहा है।
बेटी अभी भी बीजेपी में
वैसे तो स्वामी प्रसाद मौर्या रह रहकर बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं, लेकिन इनकी बेटी संघमित्रा मौर्य यूपी के बदायूं से सांसद हैं। स्वामी ने 2022 में सपा ज्वाइन कर ली, लेकिन संघमित्रा अभी भी बीजेपी में हैं।