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खेती-किसानी के लिए BSc Ag युवाओं के संघर्ष और परिवार की सोच: एक गंभीर समस्या

लखनऊ: भारत में कृषि शिक्षा के क्षेत्र में BSc Agriculture की पढ़ाई कर रहे युवाओं के लिए एक बड़ा संघर्ष यह है कि उनके घरवाले उनकी वैज्ञानिक सोच और नवीनतम तकनीकों पर आधारित सलाह को गंभीरता से नहीं लेते। यह समस्या न केवल युवाओं के भविष्य को चुनौती देती है, बल्कि पूरे कृषि क्षेत्र के विकास में एक बड़ी बाधा बनती जा रही है।

पारंपरिक सोच और व्यवहारिक ज्ञान की कमी

कई परिवारों में अभी भी खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। किसान पुराने तरीकों पर निर्भर होते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वही सबसे सही और सुरक्षित है। वे नए प्रयोगों और आधुनिक कृषि तकनीकों पर भरोसा नहीं करते। BSc Agriculture के छात्र जब अपने परिवार के सामने नई तकनीकें या वैज्ञानिक दृष्टिकोण पेश करते हैं, तो परिवार इन्हें गंभीरता से लेने के बजाय पारंपरिक तरीकों पर ही चलने पर जोर देता है।

युवाओं की पढ़ाई का उद्देश्य खेती को अधिक उत्पादक और लाभकारी बनाना है, लेकिन व्यवहारिक ज्ञान से दूर होने के कारण वे अक्सर इस मिशन में सफल नहीं हो पाते। परिवार की सलाह और निर्णय का प्रभाव उन पर इतना होता है कि वे खुद भी अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को लागू करने से पीछे हट जाते हैं। इससे न केवल युवाओं का मनोबल गिरता है, बल्कि कृषि के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है।

दुकानदारों और दूसरे किसानों पर निर्भरता

ग्रामीण इलाकों में किसान अक्सर अपनी खेती से जुड़े फैसले खुद करने के बजाय दुकानदारों और दूसरे किसानों के अनुभवों पर निर्भर रहते हैं। दुकान से खरीदी गई बीज, खाद, और कीटनाशक जैसे उत्पादों के उपयोग पर ही पूरा ध्यान होता है, चाहे वो उत्पाद सही हों या नहीं। युवा किसान जब वैज्ञानिक तरीके से सोचते हैं और अपने सुझाव परिवार को देते हैं, तो उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। परिवार यह सोचता है कि दुकानदारों का अनुभव और अन्य किसानों की देखादेखी सही होगी।

दूसरे किसानों को देखकर खेती करने का चलन भी आम है। यदि कोई किसान एक विशेष प्रकार की फसल उगा रहा है, तो बाकी किसान भी वही करने लगते हैं, चाहे वो फसल उनके खेतों और जलवायु के लिए उपयुक्त हो या नहीं। परिवार के इस प्रकार के रवैये से युवा, जो कृषि विज्ञान में नए प्रयोगों और तकनीकों को अपनाने के लिए तैयार होते हैं, हतोत्साहित हो जाते हैं।

वैज्ञानिक कृषि की अनदेखी

BSc Agriculture के छात्रों को आधुनिक कृषि उपकरण, जैविक खेती, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने की शिक्षा दी जाती है। वे यह जानते हैं कि आज के दौर में पारंपरिक खेती के तरीकों को वैज्ञानिक रूप से उन्नत किए बिना आगे बढ़ना मुश्किल है। फिर भी, जब परिवार की सोच पारंपरिक होती है और वे बदलाव को अपनाने से कतराते हैं, तो यह युवा किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन जाती है।

इस वैज्ञानिक ज्ञान को नकारने के कारण खेती में उत्पादकता और गुणवत्ता की कमी बनी रहती है। अधिकतर किसान इस बात को नहीं समझते कि आज के समय में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा और जलवायु परिवर्तन के चलते पारंपरिक तरीके पर्याप्त नहीं हैं। अगर युवा किसानों को प्रोत्साहन नहीं मिला, तो कृषि का आधुनिकीकरण एक दूर का सपना बन जाएगा।

समाधान: सोच में बदलाव और व्यवहारिक ज्ञान का विकास

इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले जरूरी है कि परिवार और समुदाय में सोच का परिवर्तन आए। किसानों को यह समझने की जरूरत है कि नए प्रयोग और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है। परिवारों को चाहिए कि वे अपने बच्चों की शिक्षा और सुझावों को सम्मान दें और उन्हें खेती में लागू करने की कोशिश करें।

इसके साथ ही, कृषि से जुड़े युवाओं को व्यवहारिक ज्ञान भी विकसित करना चाहिए। केवल सैद्धांतिक शिक्षा से काम नहीं चलेगा, उन्हें जमीन पर काम करके यह साबित करना होगा कि उनके द्वारा सुझाए गए तकनीक और तरीके अधिक उत्पादक और लाभकारी हैं।

इसके लिए सरकार और शैक्षणिक संस्थानों को भी कदम उठाने चाहिए, जैसे कि कृषि शिक्षा में व्यवहारिक प्रशिक्षण पर ज्यादा जोर देना और स्थानीय स्तर पर किसानों और युवाओं को जोड़ने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना।

खेती-किसानी के क्षेत्र में BSc Agriculture के छात्रों का संघर्ष केवल उनकी शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि पारिवारिक और सामुदायिक सोच में बदलाव लाना भी उतना ही जरूरी है। जब तक परिवार और किसान वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने के लिए तैयार नहीं होंगे, तब तक कृषि में स्थायी और लाभकारी सुधार संभव नहीं हो सकेगा। यह वक्त है कि हम पारंपरिक सोच को पीछे छोड़कर कृषि को एक आधुनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ बेहतर कृषि कर सकें और किसान अपने व्यवसाय को लाभकारी बना सकें।

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