चारागाह की जमीन पर बने सिनेमाघर को आदेश के बाद भी नही किया गया ध्वस्त

आरोपियों को तहसील स्तर पर दिया गया स्टे लाने का मौका
लखनऊ। चारागाह की जमीन पर बने सिनेमाघर के मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट तहसीलदार सरोजनीनगर ने उक्त अवैध निर्माण को ध्वस्त किये जाने के साथ ही दोषियों से 370000 रुपये क्षतिपूर्ति वसूल किये जाने का आदेश दिया था पर तहसील स्तर पर ऐसी कोई कार्यवाही नही की गई और भूमाफियाओं को पूरा मौका दिया गया कि वो उच्च अदालत से स्टे ले आयें। आरोपी स्टे तो नही ला पाय पर एडीएम वित्त एवं राजस्व के यह वाद दाखिल कर मामले को लंबा खींचने में जरूर कामयाब हो गए ताकि मामले को रफा दफा किया जा सके।
गौरतलब है कि एसडीएम सरोजनीनगर अपनी जांच में पहले ही उक्त जमीन को चारागाह की बता कर सिनेमाघर के निर्माण को अवैध करार दे चुके हैं, मामला मीडिया में जोर पकड़ने के बाद प्रशासन भी हरकत में आ गया है डीएम अभिषेक प्रकाश ने भी कार्यवाही का फैसला एसडीएम पर छोड़ कर बंद रूप से अपनी सहमति दे दी थी जिसके बाद एसडीएम सरोजनीनगर भी एक्शन के मूड आ गए थे पर उनका तबादला हो गया था।
आपको बता दें कि सरोजनीनगर तहसील के अधिकारियों की अनुकम्पा से इस तहसील के अन्तर्गत पिपरसंड ग्राम सभा में गाटा संख्या 1036/0.158 जो चारागाह में अंकित है जिसके उक्त हिस्से 0.057 पर एन के सिनेमा घर चल रहा है पर जिम्मेदार मोटी रकम लेकर मौन थे। उपजिलाधिकारी सरोजनीनगर की रिपोर्ट कह रही जिसकी शिकायत पिपरसंड ग्राम के ग्रामीण ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर की थी। जिसके बाद जिलाधिकारी लखनऊ ने उपजिलाधिकारी सरोजनीनगर से स्पष्टीकरण मांगा था।
जिसमें स्वयं उपजिलाधिकारी सरोजनीनगर ने उक्त सिनेमा हाल को अवैध बताया है और जमीन की भी संस्तुति चारागाह में की है जिसका मुकदमा भी राजस्व अधिनियम 2006 की धारा 67 में न्यायालय तहसीलदार के यहाँ लम्बित था। एसडीएम सरोजनीनगर के अनुसार मुकदमा लंबित था उसे खारिज कर दिया गया था। जिसके बाद यह तय हो गया था कि उक्त अवैध निर्माण पर कार्यवाही होगी। अब वैसा ही हुआ न्यायिक मजिस्ट्रेट तहसीलदार सरोजनीनगर ने उक्त अवैध निर्माण को जल्द ध्वस्त कर दोषियों से 370000 रुपये क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश भी दिया पर ऐसा हुआ नही भूमाफियाओं की तहसील स्तर पर पकड़ इतनी ज्यादा मजबूत है कि वहां से कोई कार्यवाही नही हुई और आरोपियों को पूरा मौका दिया गया कि वो उच्च अदालत से स्टे ले आयें। आरोपी जब स्टे लाने में कामयाब नही हुए तो उन्होंने एडीएम वित्त एवं राजस्व के यहां वाद सिर्फ इसलिए दाखिल कर दिया कि मामले को लंबा खींचा जाए ताकि उनके मामले को रफा दफा करने का पूरा मौका मिल सके।
तहसील के अधिकारियों की इस मनमानी से ग्रामीणों में काफी नाराजगी है.