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कृषि विज्ञान केंद्र जमुनाबाद फ़ार्म में ग्रामीण युवकों के लिए रोज़गार परक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को केंचुआ खाद उत्पादन, डिजिटल मार्केटिंग, और उद्यमिता के विभिन्न पहलुओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली। यह कार्यक्रम न केवल युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम भी बना।

लखीमपुर खीरी: जमुनाबाद फ़ार्म स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में एक महत्वपूर्ण रोज़गार परक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विशेष रूप से ग्रामीण युवकों को आत्मनिर्भर बनाने और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विविध विषयों पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम में कृषि विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों ने केंचुआ खाद के उत्पादन, उसकी आवश्यकता, और डिजिटल मार्केटिंग के महत्व पर अपनी जानकारी साझा की।

डॉ. एस के विश्वकर्मा: केंचुआ खाद की आवश्यकता क्यों

कार्यक्रम के प्रमुख वक्ताओं में से एक, कृषि विज्ञान केंद्र जमुनाबाद फ़ार्म के अध्यक्ष, डॉ. एस के विश्वकर्मा ने अपने वक्तव्य में केंचुआ खाद की वर्तमान कृषि प्रणाली में आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी की गुणवत्ता और उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, ऐसे में केंचुआ खाद एक प्राकृतिक और प्रभावी विकल्प के रूप में उभर कर सामने आई है। यह खाद न केवल मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है बल्कि फसल उत्पादन में भी सुधार करती है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।

डॉ. पी के विशेन: केंचुआ खाद उत्पादन तकनीक पर विस्तृत जानकारी

डॉ. वी के विशेन ने केंचुआ खाद उत्पादन की तकनीक पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने केंचुआ खाद के निर्माण की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया, जिसमें सही तापमान, आर्द्रता और जैविक सामग्री के उपयोग के बारे में बताया गया। डॉ. विशेन ने यह भी बताया कि कैसे सीमित संसाधनों के बावजूद छोटे किसान भी इस तकनीक का उपयोग कर सकते हैं और अपनी फसल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार कर सकते हैं।

डॉ. जिया लाल गुप्ता: खाद के प्रचार प्रसार और डिजिटल मार्केटिंग

डॉ. जिया लाल गुप्ता ने खाद के प्रचार-प्रसार और उसे सफलतापूर्वक बेचने के लिए डिजिटल मार्केटिंग की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे आधुनिक तकनीकों और सोशल मीडिया का उपयोग करके छोटे किसान और उद्यमी अपने उत्पादों को बड़े बाजारों तक पहुँचा सकते हैं। डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से किसान अपने ग्राहकों के साथ सीधा संवाद स्थापित कर सकते हैं और अपने उत्पाद की गुणवत्ता और विशेषताओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेगा, बल्कि उन्हें एक व्यापक और स्थिर बाजार भी प्रदान करेगा।

डॉ. एन के त्रिपाठी: केंचुआ खाद और पशुपालन का महत्व

डॉ. एस के त्रिपाठी ने केंचुआ खाद के उत्पादन में पशुपालन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि पशुपालन के माध्यम से जैविक कचरे की पूर्ति होती है, जो केंचुआ खाद के उत्पादन के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही, उन्होंने बताया कि पशुओं से मिलने वाला गोबर केंचुआ खाद के लिए एक उत्तम कच्चा माल है, जिससे खाद की गुणवत्ता में सुधार होता है और इसे जैविक खेती के लिए आदर्श बनाता है।

डॉ. मोहम्मद सुहैल: बाग़वानी में केंचुआ खाद का लाभ

डॉ. मोहम्मद सुहैल, उद्यम वैज्ञानिक, ने बाग़वानी में केंचुआ खाद के उत्पादन और इसके लाभों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बाग़वानी में केंचुआ खाद का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता बढ़ती है, जिससे पौधों की वृद्धि में सुधार होता है। डॉ. सुहैल ने बाग़वानी में केंचुआ खाद के उपयोग की तकनीकों पर भी चर्चा की, जिससे किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके।

गौरव कुमार: रूरल हब की भूमिका

रूरल हब के संस्थापक, गौरव कुमार ने ग्रामीण उद्यमिता में रूरल हब की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे रूरल हब ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता को प्रोत्साहित कर रहा है और किसानों और उद्यमियों को आधुनिक तकनीक और सेवाएँ प्रदान कर रहा है। गौरव कुमार ने रूरल हब द्वारा संचालित सेवाओं के बारे में भी जानकारी दी, जिनके माध्यम से ग्रामीण उद्यमी अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि रूरल हब किसानों को उन्नत मशीनरी, प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, जिससे उन्हें कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है और उनकी आय में वृद्धि होती है।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को केंचुआ खाद उत्पादन, डिजिटल मार्केटिंग, और उद्यमिता के विभिन्न पहलुओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली। यह कार्यक्रम न केवल युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम भी बना।

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