आखिर क्या है पुल कें टूटने की कहानी

सस्पेंशन पुल की केबल आखिर कैसे टूट गई
क्या वैबरेशन के चलते टूटा मोरबी का पुल
क्षमता से अधिक लोग पुल पर कैसे चढ़ गए
बगैर सर्टिफिकेट क्यों खुला पुल?
आखिर क्या है पुल कें टूटने की कहानी

साल 1879 गुजरात का मोरबी जिला। राजा वाघजी ठाकोर ने मच्छू नदी के ऊपर एक पुल बनवाया। मोरबी पर उस समय उनका शासन था जो 1922 तक रहा। जब लकड़ी के इस पुल का निर्माण किया गया था तो इसमें यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ । बताते हैं कि मोरबी के राजा इसी पुल से होकर दरबार जाते थे। यह पुल दरबारगढ़ पैलेस और नजरबाग पैलेस यानी शाही महल) को जोड़ता था। बाद में यह दरबारगढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच कनेक्टिविटी का प्रमुख मार्ग बना। 765 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा ये पुल एतिहासिक होने के कारण गुजरात टूरिज्म की लिस्ट में भी शामिल किया गया था.
मोरबी की शान कहे जाने वाले 143 साल पुराने इस पुल की कई बार मरम्मत हो चुकी है। हाल ही में 2 करोड़ रुपए की लागत से 6 महीने तक ब्रिज की मरम्मत यानी रेनोवेशन हुआ था। गुजराती नव वर्ष यानी 26 अक्टूबर को ही यह दोबारा खुला था। चार दिन बाद ही ये पुल 135 लोगों के लिए काल बन गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर देश के तमाम नेताओं ने शोक व्यक्त किया है। गुजरात में किसी भी छण विधानसभा चुनाव का ऐलान होने वाला है। ऐसे में विपक्ष ने सवाल खड़ा किया है कि जल्दबाजी में पुल का दोबारा खोला गया। जिसके चलते यह हादसा हुआ है। हालांकि इस मामले में जांच की जा रही है।
वहीं एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल आजतक पर आर्किटेक्चर के प्रोफेसर सेवा राम ने कहा कि अगर ब्रिज पर एक ही जगह ज्यादा लोग पहुंच जाएं तो प्वाइंट लोड पड़ता है. वहीं अगर लोग उछलने कूदने या नीचे की ओर चोट करने लगें तो स्पैन पर इम्पैक्ट लोड पड़ता है. इसके चलते ब्रिज में ऑस्लेशन (Oscilation) पैदा होता है जो खतरनाक है. प्रोफेसर ने प्रतिष्ठित न्यूज आजतक से बातचीत में बताया कि नॉर्मल ब्रिज में नदी के बीच में कॉन्क्रीट के कॉलम खड़े करते हैं जिसपर स्लैब डाले जाते हैं. मगर कॉलम खड़े करने में पानी में रुकावट आती है. ऐसे में दूसरा तरीका यानी सस्पेंशन ब्रिज का तरीका अपनाया जाता है. इसमें नदी के दो किनारों पर टॉवर बनाकर इसमें वॉकिंग डेक जोड़ा जाता है. ऐसा नहीं कि यह सुरक्षित नहीं होता. बल्कि, इन्हें बनाने में समय और लागत दोनों कम लगते हैं इसलिए ये ब्रिज बनाने का बेहतर विकल्प हैं.
प्रोफेसर ने कहा, उन्होंने बताया कि अमेरिका में 1940 में टैकोमा नैरोबी ब्रिज भी बनने के कुछ दिन बाद ही गिर गया था. जांच में पता चला कि तेज हवा की वजह से होने वाले ऑस्लेशन के चलते इम्पैक्ट लोड बना जिससे ब्रिज टूट गया.
प्रो राम ने कहा कि कोई भी स्ट्रक्चर निर्धारित लोड पर ही डिजाइन किया जाता है. ऐसे में क्राउड कंट्रोल करना बेहद जरूरी है. मजबूत से मजबूत स्ट्रक्चर की भी भार सहने की क्षमता है जिसका हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए.
रेनोवेशन को लेकर उन्होंने कहा कि अगर रेनोवेशन किया गया है तो इसका मतलब है ब्रिज अपनी एक लाइफ साइकिल पूरी कर चुका था. रेनोवेशन के समय कई चीजों का ध्यान रखा जाता है. जरूरत पड़ने पर सभी कनेक्शंन को रिप्लेस किया जाता है. कई बार नई केबल भी डाली जाती है और कई बार टॉवर भी रीडिजाइन किया जा सकता है. क्या रेनोवेशन में चूक हुई है, इसका जवाब जांच की रिपोर्ट सामने के बाद ही दिया जा सकेगा. बहरहार 135 लोगों की मौत से गुजरात ही नहीं पूरे देश में शोक का माहौल है ब्यूरो रिपोर्ट समग्र चेतना लखनउ