उत्तर प्रदेशलखनऊ

नगर पंचायत सिधौली में आज प्रत्याशियों की अग्नि परीक्षा

नगर पंचायत सिधौली में प्रथम चरण में मतदान शुरू हो चुका है। चुनाव प्रचार थमने के बाद मतदाताओं की चुप्पी के चलते नगर पंचायत अध्यक्ष के पद पर कौन काबिज होगा यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है।

गौरतलब है कि सिधौली नगर पंचायत जिले की उन नगर निकायों में शुमार होती है, जिनमें ब्राह्मण समुदाय का दबदबा है। यहां के पहले अध्यक्ष डा੦ अवधेश श्रीवास्तव चुने गये थे। दूसरे चुनाव में उमाशंकर मिश्र ने मामूली अन्तर से डा०अवधेश श्रीवास्तव को पराजित कर दिया। उमाशंकर मिश्र ने लगातार तीन चुनाव जीते और सभी चुनाव निर्दल प्रत्याशी के रूप में ही लड़े। इसके बाद नगर पंचायत अध्यक्ष का पद पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित हो गया। इस बार उमाशंकर मिश्र ने लम्बे समय तक नरोत्तमनगर दक्षिणी वार्ड के सभासद रहे गंगाराम राजपूत का समर्थन किया और वे जीत गये। अगले चुनाव मे सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित हो गई।

इस बार मैदान में उमाशंकर मिश्र की पत्नी गीता मिश्रा और गंगाराम राजपूत की पत्नी मीना राजपूत आमने सामने थीं, परन्तु बाजी मीना राजपूत के हाथ लगी। इस बार नगर पंचायत अध्यक्ष का पद पुनः पिछडे़ वर्ग के लिए आरक्षित था और गंगाराम राजपूत की जीत सुनिश्चित समझी जा रही थी। इसके बाद आरक्षण पुनः बदला और सीट अनारक्षित हो गई। वर्तमान में विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवार और निर्दल प्रत्याशियों को मिलाकर नौ प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा प्रत्याशी गंगाराम राजपूत नगर अध्यक्ष रह चुके हैं और निवर्तमान अध्यक्ष उनकी पत्नी हैं अतः सभी प्रत्याशी उन्हीं से लड़ाई मान रहे हैं। नगर पंचायत सिधौली के अधिवक्ता रहे रामपाल भार्गव भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान हैं। वे दलित और मुस्लिम मतदाताओं के सहारे अपनी नैया पार लगाना चाहते हैं। पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष स्व० उमाशंकर मिश्र की पत्नी गीता मिश्रा ब्राह्मण मतों के सहारे अध्यक्ष पद पर दावा कर रही हैं।

पिछली बार भाजपा प्रत्याशी रहे मनीष पाण्डेय निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हैं। समाजवादी पार्टी ने रमेश यादव और बहुजन समाज पार्टी ने बृजकिशोर उर्फ राजा निगम को प्रत्याशी बनाया है। आम आदमी पार्टी से आनन्द मिश्रा और निर्दलीय काजल किन्नर भी चुनावी मैदान में हैं। इतने सारे प्रत्याशियों के बावजूद मुख्य मुकाबला गंगाराम राजपूत, रामपाल भार्गव और गीता मिश्रा के बीच सिमटता नज़र आ रहा है। गंगाराम बेशक मजबूत स्थिति में हैं मगर गीता मिश्रा ने उनके वोटबैंक को ही विभाजित किया है। इसी तरह गीता मिश्रा का चुनावी भविष्य भी इस बात पर निर्भर करेगा कि वे ब्राह्मणों के अलावा अन्य बिरादरियों के कितने वोट खींच पाती हैं। क्योंकि ब्राह्मण मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है पर अकेले उनके दम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। रामपाल भार्गव का दांव दलित मुस्लिम गठजोड़ पर है परन्तु नगर पंचायत जैसे छोटे चुनाव में यह रणनीति कितनी कारगर होगी, कहा नहीं जा सकता। निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा में सेंधमारी कर अपने आपको विजय घोषित कर रहे हैं।

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