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कंडा पाथने वाले हाथ बना रहे सैनिटरी पैड

कंडा पाथने वाले हाथ बना रहे सैनिटरी पैड
– ग्रामीण महिलाओं ने शुरू किया अनूठा काम

सीतापुर। माहवारी मुद्दे को लेकर शर्माने और सकुचाने वाली महिलाएं अब इस मुद्दे पर खुलकर बातचीत करने लगी हैं। इन महिलाओं के साथ ही आसपास के गांव की तमाम महिलाएं अब नियमित माहवारी को शर्म या संकोच का विषय नहीं बल्कि स्वस्थ होने का प्रमाण मानती हैं। इस दौरान वह साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखती हैं। यह सब संभव हुआ है पंचायती राज विभाग के एक अभिनव प्रयोग से। विभाग के सहयोग से पहला ब्लॉक के लौना गांव के अमर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने सैनिटरी पैड बनाने का काम शुरू किया गया है। जिसमें दस महिलाओं को रोजगार मिला है।

समूह की अध्यक्ष आरती वर्मा बताती है कि सैनिटरी पैड को फिलहाल स्थानीय बाजार में समूह की महिलाओं के साथ ही अन्य ग्रामीणों द्वारा बेचा जा रहा है। शीघ्र ही हम लोग अपने कारोबार को बड़े पैमाने पर ले जाने की योजना बना रहे हैं। वह बताती हैं कि प्रतिदिन करीब 50-60 पैकेट तैयार हो जाते हैं, एक पैकेट में 8 पैड होते हैं।

सैनिटरी पैड के निर्माण में जुड़ी सीमा देवी बताती हैं कि पैड बनाने के दौरान हम लोग साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं। काम शुरू करने से पहले सभी को अपने हाथों को सैनिटाइज करना होता है, और काम के दौरान हम लोग कोई दूसरी चीज नहीं छूते हैं। पैड बनने के बाद इन्हें एक विशेष मशीन के माध्यम से सैनिटाइज किया जाता है, उसके बाद इनकी पैकिंग की जाती है।

आर्थिक स्थिति में आया सुधार —
सैनिटरी पैड के निर्माण में जुड़ी पूजा और हिना बताती हैं कि एक माह पहले तक हम लोग घर के काम करते थे और गोबर के उपले बनाने का काम करती थीं। इस केंद्र पर आने के बाद हम लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आ गया। रोहिणी और जूली कहना है कि जब पहली बार नैपकिन देखा तो सब औरतें उसको छू-छू कर हंसती थी, शर्म भी आती थी, लेकिन कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो गया। रेखा बताती हैं कि नैपकिन बनाने का काम यह सुनते ही मर्द मुंह बिचकाते थे, लेकिन जब घर में दो पैसे आने लगे तो सबको अच्छा लगने लगा।

क्या कहते हैं आंकड़े —
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार जिले की 55.5 प्रतिशत महिलाएं ही सैनिटरी पैड का उपयोग करती है जबकि 46.5 प्रतिशत महिलाएं अभी भी कपड़ा, जूट व अन्य सामग्रियों पर निर्भर हैं। इसके अलावा करीब 24 प्रतिशत किशोरियों अपनी माहवारी के दिनों में विद्यालय नहीं आती हैं।

क्या कहती हैं सीएमओ —
सीएमओ डॉ. मधु गैरोला का कहना है कि बड़ी संख्या में किशोरियां और महिलाएं मासिक धर्म जैसी प्राकृतिक क्रिया को गंदा और शर्मनाक मानती हैं। मासिक धर्म में लापरवाही बरतने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इससे बांझपन, स्त्री रोग, सर्वाइकल और कैंसर जैसी समस्या हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं सैनिटरी पैड अथवा घर के साफ-सुथरे कपड़ों का प्रयोग करें।

क्या कहते हैं जिम्मेदार —
ब्लॉक मिशन मैनेजर दीपिका सिंह और रिषभ द्विवेदी का कहना है कि इन ग्रामीण महिलाओं ने पंचायती राज विभाग के सहयोग से यह काम शुरू किया है। समूह की महिलाओं के साथ अब गांव की दूसरी महिलाएं भी जुड़ने लगी हैं। हम लोग इन ग्रामीण महिलाओं के साथ समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम भी करते रहते हैं। इसके अलावा शीघ्र ही सीडीओ से मिलकर आवासीय विद्यालयों, सीएचसी और स्कूल-कॉलेजों में माहवारी स्वच्छता को लेकर कार्यशाला करने की योजना बना रहे हैं, जिससे किशोरियों और महिलाओं को इसके प्रति जागरूक किया जा सके।

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