PMFME योजना की सफलता से परेशान भ्रष्ट अधिकारी: मेहनतकश DRP का रोका गया मेहनताना

लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा युवाओं और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएँ चलाई गई हैं, जिनमें उद्योग मित्र, डीआरपी (जिला संसाधन व्यक्ति), और अन्य संस्थाओं को डीआरओ के रूप में नियुक्त किया गया है। इन लोगों और संस्थाओं का मुख्य कार्य योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में दिन-रात मेहनत करना है। इनके प्रयासों से न केवल योजनाएँ सफल हो रही हैं, बल्कि जनता की भागीदारी भी बढ़ रही है और भ्रष्टाचार में भी कमी आई है।
लेकिन जिस तरह से ये योजनाएँ सफल हो रही हैं, उससे भ्रष्ट अधिकारियों के पेट में मरोड़ पैदा हो रही है। योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से यह साफ हो गया है कि यदि सही ढंग से कार्य किया जाए, तो भ्रष्टाचार की जगह ईमानदारी और पारदर्शिता समाज में स्थापित हो सकती है। ऐसे में, अपनी सत्ता और भ्रष्ट तंत्र को खतरे में देखते हुए कई सरकारी अधिकारी अब योजनाओं के क्रियान्वयन में जुटे डीआरपी और अन्य लोगों के मेहनताने को रोककर उन्हें हतोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं।
उद्यान विभाग की स्थिति: मेहनतकश डीआरपी की उपेक्षा
उद्यान विभाग में प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजना के क्रियान्वयन में जुटे डीआरपी ने बताया कि उन्हें प्रति उद्यम 20,000 रुपये का भुगतान किया जाना था, लेकिन मात्र 10,000 रुपये ही दिए जा रहे हैं। मार्च से उनका मेहनताना रुका हुआ है, और निदेशालय से संपर्क करने पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता। केवल लक्ष्य पूरा करने का दबाव डाला जाता है, और जब मेहनताने की बात आती है, तो हटाने की धमकी दी जाती है।
यह स्थिति बेहद निराशाजनक और अस्वीकार्य है। यदि डीआरपी और अन्य मेहनतकश लोगों को उनका उचित मेहनताना नहीं मिलेगा, तो वे योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन कैसे करेंगे? सरकार की तरफ से दिए गए निर्देशों और लक्ष्य को पूरा करने का दबाव उन पर लगातार है, लेकिन बिना आर्थिक सहयोग के वे कैसे अपना कार्य जारी रख सकेंगे?
भ्रष्ट अधिकारियों की मंशा पर सवाल
यह स्पष्ट है कि भ्रष्ट अधिकारी योजनाओं की सफलता से घबराए हुए हैं। उन्हें यह डर सता रहा है कि अगर योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन होता रहा, तो उनकी भ्रष्ट गतिविधियों पर अंकुश लग जाएगा। इसलिए, अब वे उन लोगों को हतोत्साहित करने में जुट गए हैं, जो ईमानदारी से काम कर रहे हैं और जनता के बीच विश्वास कायम कर रहे हैं।
यह हालात तब और चिंताजनक हो जाते हैं, जब ईमानदारी से काम करने वाले डीआरपी और अन्य क्रियान्वयनकर्ता अपनी आजीविका को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं। वे दिन-रात मेहनत कर योजनाओं को जमीन पर उतार रहे हैं, लेकिन उनका मेहनताना रोककर अधिकारियों द्वारा उन्हें हाशिए पर धकेला जा रहा है।
आवश्यकता है कड़ी कार्रवाई की
इस स्थिति पर राज्य और केंद्र सरकार को गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। अगर योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करना है, तो उन लोगों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए जो जमीन पर मेहनत कर रहे हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि वे योजनाओं में बाधा न डाल सकें और जनता को योजनाओं का पूर्ण लाभ मिल सके।
अधिकारियों द्वारा किए जा रहे ऐसे अनुचित व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने का समय आ गया है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डीआरपी और अन्य कार्यकर्ताओं को उनका पूरा मेहनताना समय पर मिले, ताकि वे बिना किसी वित्तीय दबाव के योजनाओं को सफलतापूर्वक क्रियान्वित कर सकें।