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कभी कहा था किसी ने- तुम्हारे दिमाग में गोबर भरा है, आज ऊषा जी ने उसी गोबर से व्यापार खड़ा किया।

लखीमपुर: उषा नैनीवाल जी मूलतः अंबाला से हैं. वैश्य परिवार की बेटी और खटिक (दलित) परिवार की बहू हैं. दलित समाज में शादी के बाद काफी कुछ सहना पड़ा .बाहर वाले का तो समझ आता है पर घर वाले भी साथ न दे तो संतुलन बिगड़ना स्वाभाविक है. इस असंतुलन से उबरने में जीवन कम पड़ जाएगा. उस समाज का रहन सहन, बातचीत का तरीका, खानपान, मान सम्मान सहित बहुत कुछ अलग है. रोज के झगड़ों से यह समझ में ही नहीं आया कि ये मुकाम कहाँ लेकर जा रहा है? जीवन का उद्देश्य खत्म सा हो गया. शुरू से ही समाज के प्रति सेवा का भाव रहा. उसी सेवा भाव को आगे बढ़ाया. इन्होंने कत्थक में डिग्री हासिल की थी. उसी में इन्होंने अपने आप को आगे बढ़ाया. अम्बाला में इन्होंने डांस क्लासेज घर घर लेना शुरू किया, जिसमें पति ने साथ तो दिया पर आंतरिक सहयोग नहीं किया. पति ने तो आर्थिक सहयोग भी नहीं दिया. जो भी किया, अपने दम से किया, अपनी मेहनत से किया. एक दिन ऐसा मुकाम आया कि डांस एकेडमी की मिसाल दी जाने लगी और वहीं से मुझे रक्षा मंत्रालय कर्मियों के बच्चों को आर्मी स्कूल में डांस क्लासेज देने लगी. आर्मी पब्लिक स्कूल में दो साल एक्टिवटी पीरियड में डांस टीचर के रूप में कार्य किया और वहीं से एयरफोर्स वाइवस एसोसिएशन (AFWWA) में दो साल कार्य किया. वहाँ के अभिभावकों और अफसरों से काफी प्रशंसा मिली और उन्होने ऊषाजी को मार्गदर्शन देने का फैसला किया और यहीं से शुरू हुई ” एक कोशिश ट्रस्ट ” की शुरूआत, जहाँ पर बच्चों को एक मंच के साथ साथ मीडिया मे भी आने का मौका दिया. इसके बाद इन्होंने अपना ट्रस्ट अपने सहयोगियों के साथ रजिस्ट्रार ऑफ ट्रस्ट के यहां पंजीकृत कराया. फिर जीवन में ऐसा कुछ घट गया जो ये कभी सोचना भी नहीं चाहती और ना ही उसे कभी किसी के सामने जिक्र भी नहीं करना चाहती.

उषाजी को अम्बाला छोड़कर दिल्ली आना पड़ा. उन्हें ऐसा लगा कि एक पछी को उसका खुला आसमान मिल गया.दिल्ली में आने पर एक मित्र के सहयोग से आज ये इस मुकाम पर हैं जो अंबाला में रहकर कभी मुमकिन नहीं हो सकता था, ये जीवन उन्हीं को समर्पित है. कहते हैं लोग सब कुछ एक जैसा नहीं रहता. दिल्ली में आने के बाद उषा जी ने अपने मम्मी पापा को खो दिया. फिर से जिंदगी वीरान हो गई. जिस दो साथियों ने इनका हाथ थामा था उनका भी हाथ कोरोना के कारण छूट गया, परंतु आस कहीं जिंदा थी. जो गलतफहमियां हुई उन्हें कुछ समय के लिए भूलकर दोबारा से उठने का साहस किया. उन साथियों ने इतना कुछ किया. उनकी हर कही कड़वी बात अथवा कड़वे शब्दों को प्रेरणा के रूप मे लिया. उन शब्दों से अपने घर की दीवारें लीप ली. उनमें से एक शब्द था गोबर, जो शब्द उनके दो साथियों द्वारा कहा गया था कि “तुम तो गोबर हो, तुम्हारे तो दिमाग में भी गोबर है. छह महीने तो यही सोचने में लग गया कि वे गोबर कैसे हो सकती हैं? जैसे सबने उषा जी का साथ छोड़ दिया, वैसे दोनों साथियों ने साथ छोड़ दिया. उन शब्दों से उबरने में छह महीने लगे और उसी गोबर से गोबर वाले शब्द को एक रूप दे दिया गया- गमले का, लकड़ी का, मूर्ति का, दीये का और अगरबत्ती का. और फिर क्या था, छह महीने इस पर खूब काम किया. आज उन्होंने 40 औरतों और लड़कियों को रोजगार दिया. फिर आया वही तारीख (4 अक्टूबर,2020) जिस तारीख को उषा जी ने सब कुछ खो दिया था. अब 4 अक्टूबर,2021 को वही सब कुछ पाने का वक़्त आ गया था. आज उषा जी दिल्ली में दो गौशालाओं के साथ जुड़कर अपने कार्य को बखूबी अंजाम दे रही हैं. सबसे ज्यादा हैरानी की बात है कि जिन दो साथियों ने इन्हें गोबर कहा था सबसे पहले गोबर का गमला उन्हें इन्होंने भेंट के रूप में भेजा. प्राप्तकर्तागण हैरान थे कि भेजनेवाला कौन हो सकता है, पर अंदर ही अंदर उन्हें यह पता था कि ये कोई और नहीं बल्कि उनकी एक पाग़ल दोस्त उषा/लवली गुप्ता ही कर सकती है.

“एक कोशिश” उषा जी के एक साथी का सपना भी है, जिन्होंने इसकी नींव रखी. आज ये सपना सही मार्ग के साथ- साथ अपनी एक अलग पहचान भी बना रहा है. ये वो साथी हैं जो साथ तो नहीं है पर दूर रहकर भी इसको सशक्त कर रहा है. “एक कोशिश ट्रस्ट” आज जो भी है वह उषा जी के उसी दोस्त के बदौलत है. उसी ने सिखाया कि लोगों को रोजगार देने से ही लोगों का सशक्तिकरण और परिवार में खुशहाली आ सकती है. एक कोशिश ट्रस्ट का सपना है कि लोगों के स्किल डेवलपमेंट पर कार्य किया जाय और उन्हें एक प्लेटफॉर्म दिया जाय.

उषा जी के उस साथी ने एक कोशिश ट्रस्ट का नाम कुछ सोच समझकर रखा होगा, तो इसे एक कोशिश की तरह ही करते रहना है, क्योंकि जीवन हमेशा विद्यार्थी की तरह जीना चाहिए. शिक्षित तो सभी बनते हैं पर विद्यार्थी कोई नहीं बनना चाहता. सब के प्रति अच्छा भाव रखें, अच्छा स्वभाव रखें, यही एक कोशिश है इनकी. अपना जीवन इन्होंने अपने उस साथी के नाम समर्पित किया है जो एक कोशिश ट्रस्ट के रीढ़ की हड्डी है. इनका हर प्रोजेक्ट उन्हीं को समर्पित है.

इस क्षेत्र में आनेवाली समस्याएं और उसका समाधान:
सबसे पहले इन्हें यह समस्या आई कि इन्हें गाय के बारे में कुछ भी नहीं पता था. स्कूल में पढ़ाई गई सिर्फ गाय पर निबंध लिखना आता था, इसके आगे कुछ भी नहीं. फिर जैसे जैसे गोबर पर काम करना शुरू किया तो पता लगा कि देशी गाय का क्या महत्व है. धीरे-धीरे ट्रेनिंग क्लासेज लेनी शुरू की और फिर पता लगा कि गाय की सेवा आज के दौर में लुप्त होती जा रही है. लोग गाय को सिर्फ दूध के लिए ही पालते हैं और छोड़ देते हैं. उन्हें समय पर दवाई तक नहीं दे पाते. सिर्फ व्यापार -व्यापार -व्यापार. गाय के प्रति भाव तो कहीं रहा ही नहीं. हिंदू सनातन विचार लुप्त होते जा रहे हैं. यह देखकर बहुत दुख होता है.

गाय के गोबर पर काम करते करते उषा जी ने एक प्रतिज्ञा ली कि वे जिस भी गौशाला से जुड़ेगी, वहाँ व्यापार के लिए नहीं बल्कि हिन्दू सनातन आस्था के लिए ही जुड़ेगी. दिल्ली के गोशालाओं के संचालकों से मिलाने हेतु एक नए मित्र गोपाल प्रसाद जुड़े, जिन्होंने ठान लिया कि हम हिन्दू आस्था और सनातन संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन पर कार्य को मूर्तरूप देने के लिए सभी गौभक्तों को जोड़ने का कठिन संकल्प लिया है. उनकी सोच को उषा जी का शत-शत नमन.

अगर हम गाय को बचाना चाहते हैं और हिंदू सनातन धर्म को बचाना चाहते हैं तो हमें गौमाता से संबंधित विषयों पर गंभीरतापूर्वक कार्य करना पड़ेगा. बाधाएं तो आएंगी पर जाहिर है समाधान भी होगा. ऊषा जी को भीड़ में न चलकर अकेले चलने की आदत है. दूसरों के सेल्फी का हिस्सा न बनकर सामने वालों को अपनी सेल्फी लेने पर मजबूर कर सको तो क्यों न हम उस सेल्फी में उन गौमाताओं को भी जोड़ लें जिनकी आज पूर्ण रूप से उपेक्षा हो रही है. कुछ लोग कहते हैं कि इंसानों का शोषण होता है, जो शायद गलत है. वास्तव में इंसानों का ही नहीं बल्कि पशुओं का भी घोर शोषण हो रहा है. कैसा घोर कलियुग आ गया है? सनातन तो रहा ही नहीं. उसी सनातन को बचाने के लिए हमारी एक कोशिश ट्रस्ट ने एक छोटी सी पहल की है. ट्रस्ट के माध्यम से उन महिलाओं को रोजगार दिया जा रहा है, जिनका शोषण हो चुका है-कुछ समाज द्वारा और कुछ अपनों द्वारा. एक कोशिश ट्रस्ट के माध्यम से औरतों को गोबर द्वारा गमले,लकड़ी, दीये, मूर्ति, अगरबत्ती, घड़ी ,नेम प्लेट, चाबी के छल्ले और गोनाईल इत्यादि बनाना सिखाया जाता है. देश की आम जनता को सर्वसुलभ कराने एवं मार्केटिंग के उद्देश्य से “एक कोशिश ट्रस्ट” ने कई संस्थाओं और व्यापारिक संस्थानों के साथ समझौता किया है।

प्रस्तोता: गोपाल प्रसाद
संपर्क:9910341785, 8178949704.

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