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रेशम उद्यान को पीपीपी मॉडल पर देकर किसान को उद्यमी बनाने की योगी सरकार की पहल

उत्तर प्रदेश सरकार को रूरल हब ने भेजा था सुझाव

लखनऊ – भारत वर्ष में रेशम एक वस्त्र ही नहीं बल्कि एक संस्कृति है, जो कभी राजा महाराजाओं की राजसी पोशाक थी आज भी यह सभी वर्गों में उत्सव एवं अन्य कार्यक्रमों में शान का प्रतीक है। उत्तर प्रदेश के बनारस की बनारसी रेशमी साड़ी भारत वर्ष में अपना अग्रणी स्थान रखती है। रेशम उत्पादन कार्य कृषि आधारित व्यवसायिक खेती है जिससे अन्य पारम्परिक फसलों से अधिक आय प्राप्त होती है। रेशम धागा रेशम कीट द्वारा उत्पादित ककून से बनाया जाता है। रेशम कीट भोज्य पत्तियों को खाकर अपने लार से शरीर के चारों तरफ सुरक्षा आवरण बनाकर ककून उत्पादित करते हैं। यह भोज्य पत्तियां शहतूती,टसर/अर्जुन, एरी/अरण्डी की होती है। तद्नुसार उत्पादित रेशम के प्रकार का नामकरण कर शहतूती,टसर एवं एरी सिल्क कहा जाता है। प्रदेश में 80 प्रतिशत शहतूती ककून,15 प्रतिशत एरी ककून एवं 5 प्रतिशत टसर ककून उत्पादित होता है। कोया से धागा बनाये जाने के लिए तकली, मटका,चर्खा के अतिरिक्त वर्तमान में उन्नत किस्म की ‘‘मल्टीइण्ड रीलिंग मशीन’’ और ‘‘ऑटोमेटिक रीलिंग मशीन’’ (ए0आर0एम0) का उपयोग किया जाता है। धागा बनाने के लिए ककून उबाल कर एक छोर पकड़कर धागा बनाया जाता है। कई धागों को जोड़कर आवश्यकतानुसार मोटा धागा बनाये जाने की प्रक्रिया को ट्विस्टिंग कहते हैं।

रेशम, रसायन की भाषा में रेशमकीट के रूप में विख्यात इल्ली द्वारा निकाले जाने वाले एक प्रोटीन से बना होता है । ये रेशमकीट कुछ विशेष खाद्य पौधों पर पलते हैं तथा अपने जीवन को बनाए रखने के लिए ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में कोसों का निर्माण करते हैं । रेशमकीट का जीवन-चक्र 4 चरणों का होता है, अण्डा, इल्ली, प्यूपा तथा शलभ । व्यक्ति रेशम प्राप्त करने के लिए इसके जीवन-चक्र में कोसों के चरण पर अवरोध डालता है जिससे व्यावसायिक महत्व का अटूट तन्तु निकाला जाता है तथा इसका इस्तेमाल वस्त्र की बुनाई में किया जाता है ।

उत्पादन
विश्व में भौगोलिक दृष्टि से एशिया में रेशम का सर्वाधिक उत्पादन होता है जो विश्व के कुल उत्पाद का 95% है । यद्यपि विश्व के रेशम मानचित्र में 40 देश आते हैं, किंतु अधिक मात्रा में उत्पादन चीन एवं भारत में होता है तथा इसके उपरांत जापान, ब्राजील एवं कोरिया में  चीन, विश्व को इसकी आपूर्ति करने में अग्रणी रहा है ।

रेशम के सर्वाधिक उत्पादन में भारत द्वितीय स्थान पर है, साथ ही विश्व में भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है । यहां घरेलू रेशम बाजार की अपनी सशक्त परम्परा एवं संस्कृति है । भारत में शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्यतया कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू व कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल में किया जाता है जबकि गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है ।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूपी से जब उत्तराखंड जब अलग हुआ था, तब उत्तर प्रदेश में 22 टन रेशम का उत्पादन होता था. अब प्रदेश में ये उत्पादन बढ़कर 350 टन से अधिक हो गई है. सरकार अगले 2 से 3 साल में रेशम कारोबार को बूस्ट कर किसानों की आय कई गुना बढ़ाना चाहती है.

रेशम उत्पादन के मुख्य क्षेत्र-ः
शहतूती रेशम उत्पादन मुख्यतयाचंदौली सोनभद्र फतेहपुर ललितपुर टसर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है कानपुर देहात कानपुर शहर , जालौन हमीरपुर बांदा चित्रकूट फतेहपुर में ककून होता है , गोरखपुर श्रावस्ती कुशीनगर बहराइच लखीमपुर सीतापुर पीलीभीत शाहजहांपुर हरदोई रामपूर सहारनपुर लखनऊ बाराबंकी अयोध्या अंबेडकर नगर तराई में आते हैं ककून का उत्पादन किया जाता है

अकेले बनारस व मुबारकपुर से रेशम की मांग 3000 मैट्रिक टन की मांग है इस मांग की मात्र एक फीसदी ही पूर्ति यूपी से हो पाती है
विगत वर्ष रुरल हब की टीम ने कर्नाटक भ्रमण के दौरान एक रिपोर्ट शाशन को प्रेषित की थी जिसको उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 27 जनपदों में स्थित केंद्रों को PPP मोड़ पर चलने का कैबिनेट में अहम प्रस्ताव पास किया 30 जनपदों में राशन उत्पादन को प्रोत्साहित कर किसानों और उद्यमियों की दोगुनी आय की जाएगी ऐसा पहली बार हुआ है कि एक साथ रेशम उत्पादन से किसान और उद्यमी जुड़ेंगे
उत्तर प्रदेश सरकार एवं केन्द्रीय रेशम बोर्ड सहायतित,‘‘सेन्ट्रल सेक्टर स्कीम’’ (सिल्क समग्र योजना) शहतूती रेशम उत्पादन प्रति एकड़ शहतूत वृक्षारोपण, कीटपालन उपकरण एवं कीटपालन गृह पर 75% सामान्य श्रेणी के कृषको को, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कृषको को 90% का अनुदान उपलब्ध है।
कम लागत मूल्य पर चाकी रेशम कीट उपलब्ध कराना।
कोया विक्रय की व्यवस्था।
कीटपालकों व विभागीय कार्मिकों के लिये निशुल्क प्रशिक्षण की व्यवस्था , निशुल्क शहतूत पौध की उपलब्धता कराती हैं व केन्द्रीय रेशम बोर्ड सहायतित,‘‘सेन्ट्रल सेक्टर स्कीम’’ (सिल्क समग्र) शहतूती रेशम उत्पादन
(किसान नर्सरी (शहतूत) , शहतूत वृक्षारोपण, सिंचाई सुविधा का विकास, कीटपालन उपकरण, कीटपालन गृह निर्माण, विशृद्धिकारक क्रय, प्रशिक्षण सहायता , मल्टीइण्ड रीलिंग मशीन स्थापना पर सामा0 वर्ग के लाभार्थयों हेतु 75% एवं अनु0 जाति /अ0ज0जाति वर्ग के लाभार्थियों हेतु 90% अनुदान सहायता देय है तथा लाभार्थियों को निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

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