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पहले दो बार जिस कोतवाली में कोतवाल रहे वहीं आज बने बैठे हैं एसीपी

नियमों और सीएम के आदेशों को ताख पर रख के लखनऊ में प्रमोटी पीपीएस अधिकारी को दी गई तैनाती, एक ही विभाग में दोहरा मापदंड क्यों?

समग्र चेतना/ राहुल तिवारी

लखनऊ। यूपी में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है शायद ये नियम बडे़ स्तर के अधिकारियों के लिए मायने नहीं रखते अगर मायने रखते भी है तो सिर्फ और सिर्फ सिपाही दरोगा के लिए। एक एसीपी जो 2016 में आलमबाग थाने का कोतवाल रहा हो और 2017 में थाना प्रभारी कृष्णा नगर के पद पर दो बार रिपोस्टिग रहा हो उसके बाद बाराबंकी के फतेहपुर में स्थानांतरण के कुछ दिन बाद लखनऊ वापसी हो जाना यह दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश में कानून और नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है।

एक पुरानी कहावत है कि “जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का” एसीपी साहब रसूखदार होने के साथ साथ थोड़ा दबंग किस्म के भी माने जाते हैं तभी तो मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी सरकारी नम्बर को रिसीव न करना इनकी फितरत में है। अगर एसीपी होने के बावजूद सारे दुख दर्द धुल जाते हैं तो फिर एक सिपाही दीवान और दरोगा इनका कार्यकाल 8 साल माना जा रहा इनके साथ इस तरह का दुर्व्यवहार अधिकारी क्यों करते हैं।

लेकिन एसपी का कार्यकाल नहीं माना जाता है वही एक सिपाही के बाद दीवान 6-7 साल रहा और 8 साल दरोगा की पोस्टिंग मानकर हटा दिया जाता है ये आकलन तो बिलकुल गलत है। शायद मुख्यमंत्री के पास बैठे अधिकारी यह काम कर रहे हैं। इस तरह से अधिकारी कर्मचारी और जनता दोनों में छोब है आखिर एक ही विभाग में ये दोहरा मापदंड दंड क्यों?

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