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लोकतंत्र का मंदिर भी विधायक जी की गुटखा संस्कृति से अछूता नहीं रहा!


लोकतंत्र का मंदिर भी विधायक जी की गुटखा संस्कृति से अछूता नहीं रहा! चंद कदम की दूरी पर ही टॉयलेट था पर सार्वजनिक मंचों पर धीर-गंभीर और शालीन से दिखने वाले विधायक जी ने विधानसभा गैलरी में ही मुंह में दबी पिचकारी छोड़ दी। शायद माननीय जी ने इसे अपने क्षेत्र की कोई मासूम सड़क समझ लिया था जिसे आते-जाते वह कभी भी रंगीन किया करते थे। लेकिन उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि होली से पहले उनकी ‘पिचकारी क्रांति’ सोशल मीडिया पर बजबजा उठेगी!
खुद विधानसभा अध्यक्ष को हस्तक्षेप करना पड़ा, ….कोई कब तक चुप बैठे, जिस घर को सजाने में पैसों के साथ पसीना भी लगा हो उसकी भव्यता-दिव्यता पर आंच आये तो हर मुखिया उबलेगा। बहरहाल यह शालीनता कहें या एक परिवार के बुजुर्ग का बड़प्पन। कैमरे में विधायक जी का चित्र या यूं कहें चरित्र देखने के बाद भी महाना जी नाराज तो हुए पर उन्होंने माननीय जी का नाम सार्वजनिक नहीं किया। हालांकि गंदी हुई कारपेट का पैसा विधायक जी से वसूलने की बात कहकर उन्होंने एक संदेश दे दिया कि ऐसा करने वाले बाज आयें क्योंकि ये विधानसभा सिंर्फ 403 विधायकों की नहीं बल्कि लगभग 24 करोड़ यूपी वासियों की आस्था का मंदिर भी है।
हालांकि महाना जी इसी सत्र में पहले दिन ही गुटखा प्रेमियों को कह चुके हैं कि विधानसभा में ‘जिसने थूका, वही पोछेगा!’ फिर भी माननीय जी गैलरी लाल करने से बाज नहीं आये। आप समझ सकते हैं कि थूकने की उनकी आदत कितनी पक्की है। बहरहाल विधानसभा के अंदर ही नहीं बाहर भी ‘जिसने थूका, वही पोछेगा!’ का फॉर्मूला हर किसी पर लागू होना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो हर गुटखा खाने वाला पोछा और फिनायल भी साथ रखेगा। सफाई कर्मियों को मेहनत कम पड़ेगी। सड़के थुकी हुई नहीं दिखेंगे। उल्टा ‘‘गुटखा खाओ, इमारत चमकाओ’’ जैसे नारे यूपी ही न हीं पूरे देश में बुलंद होंगे। मुझे लगता है ”स्वच्छ भारत मिशन” के लिए इससे बड़ी संजीवनी और कुछ नहीं हो सकती ।
नमस्कार।
डॉ. सुयश नारायण (पत्रकार, शोधार्थी)
निर्वाचित सदस्य, उत्तर प्रदेश राज्य मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति
(माननीय जी कैमरे में नजर आ गये, दूसरों पर टिप्पणी करने से पहले हमें आत्मचिंतन और मंथन करना चाहिए कि हम स्वयं इस समाज के लिए कितने योग्य हैं। हम बदलेंगे जग बदलेगा)




