डायरेक्टर बनकर एक अस्पताल नहीं संभाल पा रहे वो डीजी बनकर प्रदेश कैसे संभालेंगे!


लखनऊ। जरा सोचिए जो व्यक्ति डायरेक्टर होकर एक अस्पताल की व्यवस्था न संभाल पा रहा हो, वह डीजी बनकर प्रदेश कैसे संभालेगा। नमस्कार मैं हूं सुयश मिश्रा आप देख रहे हैं समग्र चेतना।
महज डेढ़ किमी पर मुख्यमंत्री जी का आवास, एक किमी पर सचिवालय और लोकभवन, चार किमी पर विभागीय मंत्री और डिप्टी सीएम का आवास फिर भी मरीजों को एक अल्ट्रासाउंड के लिए महीनों का इंतजार करना पड़े तो सवाल उठाना जरूरी हो जाता है।

ऐसा नहीं है कि सरकार व्यवस्था नहीं दे रही। सिविल में दो दो अल्ट्रासाउंड मशीने लगी हैं। सरकार की तरफ से मशीनरी सुविधा में कमी नहीं है, जो है भी उसे लगातार अपडेट करने का प्रयास जारी है। कमी व्यवस्था बनाने वालों में है। जिन्हें बड़ी कुर्सी पर बैठाकर जिम्मेदारी दी गई है उनकी व्यवस्था सुधारने की मंशा ही नहीं है। हम बात कर रहे हैं। हजरतगंज में स्थित श्यामा प्रसाद मुखर्जी यानी सिविल अस्पताल की कमान संभाल रहे निदेशक नरेंद्र अग्रवाल की। नरेंद्र जी के हांथों में सिविल अस्पताल की जिम्मेदारी है। खबर है कि वह डीजी बनने की भी रेस में हैं।
लेकिन सवाल यह है कि जब एक अस्पताल की व्यवस्था को सुधारने में वह नाकाम हो रहे है तो डीजी बनकर प्रदेश की व्यवस्था कैसे संभालेंगे। पिछले महीने तक एक एक महीने बाद तक की अल्ट्रासाउंड की तारीखें मिल रही थीं मरीज बेहाल थे, लेकिन अग्रवाल जी की सेहत पर कोई सिकन नहीं था। न ही उच्च अधिकारियो का डर और न ही सरकार के सख्त निर्देश का भय। पिछले दिनों कई समाचार पत्रों ने इस मामले को उठाया। खबर है कि प्रमुख सचिव साहब ने निदेशक महोदय को व्यवस्था न सुधार पाने के लिए फटकार भी लगाई थी लेकिन उनकी कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं दिखा। जब उनसे पूछा गया तो व्यवस्था सुधारने के बजाए उन्होंने कहा कि फ्री जांच और दवाई के चक्कर में हर कोई सिविल में आ जाता है इसलिए ऐसा हो रहा है।…कृपया स्क्रोल करें, खबर आगे भी है

जब हमने उनसे कहा कि जब सरकार सबको मुफ्त इलाज दे रही है तो आपको तकलीफ क्यों? हालांकि इस सवाल पर वह बोले की अब दोनों मशीनों से अल्ट्रासाउंड होने लगे हैं जल्द ही व्यवस्था सुधर जाएगी। ऐसा नहीं है कि इसी मामले में व्यवस्था गड़बड़ है। हर जगह स्थिति डामाडोल है। ताजा मामला सिविल अस्पताल में मरीजों को गलत दवाई देने का है। आलमबाग निवासी मोहम्मद सादिक का आरोप है कि सिविल अस्पताल में उन्हे वो एंटीबायोटिक दे दी गई जो डॉक्टर ने लिखी ही नहीं थी। जब वह डॉक्टर को दवाई दिखाने गए तब इस बात का उन्हें पता चला। उन्होंने निदेशक महोदय से मुलाकात करके शिकायत की तो नरेंद्र अग्रवाल ने एक्शन लेने के बजाए अपने सहयोगी को भेजकर दवाई बदलवाने के लिए भेज दिया। इतना हीं नहीं कैंट निवासी द्वारका प्रसाद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
उन्हें भी पर्चे में लिखी दवाई में एक दवाई गलत दे दी गई डॉक्टर ने जब उन्हें बताया तो उन्होंने काउंटर पर जाकर शिकायत की और दवाई बदलवाई। ऐसे मामले लगभग हर रोज आ रहे हैं। लेकिन जब डायरेक्टर नरेन्द्र अग्रवाल को इसकी जानकारी दी जाती है तो वह कार्रवाई के बजाए मामले को शांत करा देते हैं। इतना ही नहीं मोहम्मद सादिक ने बताया कि कुछ महीने पहले सिविल में उन्होंने अपना कान दिखाया तो डॉक्टर ने ड्राप लिखा जब दवाई लेने वह काउंटर पर गए तो उन्हें ड्राप की जगह ट्यूप दे दिया गया। सुनिए टेलीफोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने हमसे क्या कहा।
जल्द ही वीडियो अपडेट हो रहा है…




