ब्याजखोरी के जाल में फंसा मोहम्मदी, जिला बनने का सपना अधूरा
लखीमपुर खीरी: मोहम्मदी का जिला बनने का सपना ब्याजखोरी की जकड़न में फंसता नजर आ रहा है। शहर में बड़े पैमाने पर ब्याज पर पैसा देने का काम हो रहा है, जिसने यहां के आर्थिक और औद्योगिक विकास को ठप कर दिया है। जिन लोगों पर मोहम्मदी में उद्योग लगाने और रोजगार सृजन की जिम्मेदारी थी, वे खुद ब्याजखोरी के शोषणकारी धंधे में शामिल हो गए हैं। बिना किसी जोखिम के ज्यादा मुनाफा कमाने की लालच ने यहां के लोगों को उद्यमिता की राह से भटका दिया है।
मोहम्मदी में एक कहावत प्रचलित है, “यहाँ ज़हर भी उधार मिलता है, जिसे खाने के बाद उसके घर वाले ब्याज सहित चुकाते हैं।” यह कहावत स्थानीय अर्थव्यवस्था और ब्याजखोरी के दुष्चक्र को बखूबी दर्शाती है, जो यहां के लोगों का शोषण कर रही है। इस व्यवस्था ने उद्यमिता के विकास को हाशिए पर धकेल दिया है, जिससे न तो रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो पा रहे हैं और न ही शहर का समग्र विकास हो रहा है।
शहर में ब्याजखोरी की चमक-दमक देखकर छोटे व्यापारियों ने भी इसी रास्ते को अपनाना शुरू कर दिया, जिससे उद्यमों की स्थापना और निवेश की संभावनाएं गर्त में चली गई हैं। यदि मोहम्मदी को जिला बनाना है, तो यहां के लोगों को ब्याजखोरी से बाहर निकलकर उद्योग स्थापित करने होंगे।
जब तक इस शोषणकारी व्यवस्था का अंत नहीं होता, मोहम्मदी का जिला बनने का सपना अधूरा ही रहेगा और यहां के लोग रोजगार और विकास के अवसरों से वंचित रहेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि उद्यमिता को बढ़ावा देना ही इस शहर के विकास की कुंजी है।
क्या मोहम्मदी ब्याजखोरी से मुक्त होकर विकास की राह पर चल पाएगा? यह एक बड़ा सवाल है जो अभी भी अनुत्तरित है।