उत्तर प्रदेशलखनऊसमग्र समाचार

चाटुकारी और जातिवाद कर जनता को नाराज करने वाले करीबी ही बने कौशल किशोर की हार का कारण

पुराने कार्यकर्ताओं की नाराजगी और अवसरवादियों पर अत्यधिक भरोसा ले डूबा सांसदी

समग्र चेतना/राहुल तिवारी

लखनऊ।जनता जब फैसला सुनाती है तो अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर आने में समय नहीं लगता।इस बार मोहनलालगंज लोकसभा सीट ने ऐसा ही उदहारण पेश कर अचंभित कर दिया।चुनाव परिणाम सामने आने के बाद बडे़ बडे़ मंत्री धराशायी हो गये।जिन्होंने ये कभी सोचा भी नही था की जनता उन्हें इस प्रकार नकार देगी और उन्हें हार का सामना करना पड़ेगा अब हारे प्रत्याशी के राजनीतिक कैरियर पर ही सवालिया निशान लग गया है।इस बार का चुनाव मानों ऐतिहासिक हुआ न देश मे मोदी फैक्टर चला और न उत्तर प्रदेश में योगी फैक्टर।

अगर कोई फैक्टर चला तो सिर्फ बेरोजगारी,महंगाई,अग्निवीर और पार्टी कार्यकर्ताओं का अधिकारियों से सामंजस न होना।मोहनलालगंज लोकसभा क्षेत्र से तीसरी बार भाजपा प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री रहे कौशल किशोर जिन्होंने नशा मुक्त समाज आन्दोलन पूरे देश मे चलाया उन्हे भी करारी हार का सामना करना पड़ा।अगर बात करें कौशल किशोर की तो वह एक बेहतर छवि के नेता है और उन्होंने गरीब परिवार से निकलकर राजनीति में केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय किया।इस बार चुनाव में कौशल किशोर की हार का कारण उनके अपने ही बने वो चाहे कौशल किशोर के प्रतिनिधि हो या फिर उनके नाम से क्षेत्र में पुलिस प्रशासन व तहसील प्रशासन पर रौब झाड़ने वाले उनके करीबी। शायद यही लोग कौशल किशोर के हार का मुख्य कारण बने।जबकि ज्यादातर ऐसे लोग जहाँ ये रहते हैं जिस गाँव में रहते हैं वो अपना गाँव तक नहीं जिता सके लेकिन कहने को हैं कौशल किशोर आति करीबी।जनता है सब जानती है।जनता मूर्ख नहीं है।

ये ऐसे सलाहकार थे जो गांवो में एक दूसरे को लड़ाने का काम करते थे और ठेकेदारी भी करते थे शायद इन्ही के इशारे पर चलना कौशल किशोर को इस चुनाव में भारी पड़ गया।केंद्रीय मंत्री की बड़ी हार का दूसरा बड़ा कारण रहा पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी।भाजपा के 2014 और 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं के लगने से बडे़ मार्जिन से कौशल किशोर ने जीत का परचम लहराया था वहीं कुछ दलालाे के करीब आने से भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया गया।जिसके कारण उन्हें इस बार हार का मूंह देखना पड़ा।इसके अलावा एक जाति विशेष को छोड़कर किसी के सुख दुःख में सरीख न होना और इन्ही आस्तीन के सांपों के इशारे पर चलना कौशल किशोर की हार का कारण बना।लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत।

कौशल किशोर से कम लेकिन इनके गांव,गांव के प्रतिनिधियो से क्षेत्रीय ग्रामीण का सामान्य व साधारण परिवार नाराज रहा।कारण अपने निर्धन कार्यकर्ताओ को आगे न बढ़ा कर धनवान को तबज्जो व सामान्य व साधारण परिवार को अनदेखा व दरकिनार करना महगा पड़ा। जबकि कौशल किशोर बेहद अच्छी छवि के नेता माने जाते हैं।वो कहावत चरितार्थ हो गई मुझे अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था मेरी कस्ती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था।अगर सूत्रों की माने तो इनके सरोजनीनगर प्रतिनिधि ने सरोजनीनगर के हर गांव में एक नया नेता तैयार कर दिया। कमोबेश यही हाल मलिहाबाद, मोहनलालगंज,सिंधौली,बख़्शी का तालाब का रहा जहाँ पुराने समय के साथियों को दरकिनार किया जिससे पुराने लोग भड़के और चुनाव का इन्तजार करते रहे और चुनाव में विपक्ष में मतदान करवा कर जबरदस्त जवाब दिया।मंत्री जी हार जीत तो लाजमी है चाहे राजनीति का अखाड़ा हो या फिर पहलवानी का।लेकिन इस बार आपको फूंक फूंक कर पैर रखना पड़ेगा और चाटूकारों व दलालों से दूर रहना पड़ेगा चाहें वो किसी वर्ग का हो।

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