कार्यकर्ताओं का हाल: 75 दिन अपनी ही सरकार में धरना

शब्द मेरे, पीड़ा समर्थकों की(बीकेटी विधानसभा)

फेसबुक स्क्राल कर रहा था तो 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान का एक वीडियो मिला। वीडियो बीकेटी के वर्तमान विधायक जी का था। किसी तीसरे व्यक्ति ने अपनी वाल पर शेयर किया था। वैसे तो विधायक जी का संवाद बेहद मीठा है। भाषण भी देते हैं तो ऐसे लगता है जैसे शब्दों की जगह शहद निकल रहा हो, लेकिन इस वीडियो में वह थोड़ा आक्रामक थे। कभी बायां हांथ समेट रहे थे कभी दाहिना हांथ उठा रहे थे। पूरे वीडियो में तीन बार उन्होंने सिर्फ एक ही बात कही कि मैं कभी भी अपने कार्यकता को झुकने नहीं दूंगा। अगर वह सही है तो कभी नहीं और अगर गलत भी है तो पहले जांच फिर कार्रवाई, यही मेरा ध्येय होगा। विधायक जी का इतना बोलना, कार्यकर्ताओं के चेहरों पर मंद मुस्कान और फिर जिन्दाबाद जिन्दाबाद के नारों से पूरा वातावरण गुंजायमान।
इसी के साथ वीडियो भी खत्म हो जाता है। अतीत के इस दृश्य को देखने के बाद वर्तमान का एक दृश्य मेरी आंखों के सामने स्वत: आ गया और फिर मायूसी सी छा गई। ऐसा लगा जैसे सारे सपने, सारी उम्मीदें मोती की माला के टूटने के जैसे बिखर गईं। वह दृश्य था बीकेटी विधानसभा के इटौंजा क्षेत्र का। बीजेपी का ही एक कार्यकर्ता कुछ किसानों को लेकर पिछले 75 दिनों से तंबू लगाए धरने पर बैठा है। नाम है तिरंगा महाराज। मांग है कुछ भू माफियाओं के चंगुल में फसी गरीब किसानों की जमीन मुक्त हो जाए। इटौंजा में एक 10 बाई 6 का रोडबेज का डिब्बा रख जाए जिससे बसे भी यहां रुकने लगे और लोगों की समस्याओं का समाधान हो जाए।
एक और मांग है कि इटौंजा में जल निकासी की कोई मजबूत कोशिश कर दी जाए। बस इतनी सी अरदास लिए किसान 75 दिनों से तंबू में हैं। हालांकि इस दौरान 4 बार धरना स्थल पर विधायक जी 20 मिनट, आधा घंटा, 35 मिनट, 55 मिनट के लिए पहुचे (यह जानकारी किसानों द्वारा दी गई), समर्थन दिया, ये भी कहा कि किसानों की जमीन जहां भी हो उन्हेंं मिलनी चाहिए, हालांकि यही बात तिरंगा महाराज भी पिछले 75 दिनों से कह रहे हैं, लेकिन उनकी भी कोई सुन नहीं रहा। आलम यह है कि धरना स्थल पर एक लाइट तक नहीं लग सकी। उल्टा किसानों को दी गई सुरक्षा भी अब वापस हो गई है।
वह अलग बात है कि इसके पीछे राजनीति नहीं रही होगी, लेकिन ऐसी कौन सी मांग किसानों ने रख दी है जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। प्रदेश भर में एक के बाद एक भूमाफियाओं पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हो रही है, फिर क्यों पिछले 75 दिनों से बीजेपी के ही कार्यकर्ता बीजेपी के ही झंडे के साथ किसानों को न्याय दिलाने के लिए धरने को मजबूर हैं। आप इस पूरे मामले में इच्छाशक्ति की कमी, ऊपरी दबाव व्यक्तिगत कारण भी तलाश सकते हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि विपतिकाल में ही व्यक्ति की सही पहचान होती है। मेरी आखों के सामने फिर वही दो दृश्य स्वत: आ रहे हैं। जिनका मैं उपर जिक्र कर चुका हूं। बहरहाल संघर्ष भी अपना है सरकार भी अपनी है प्रतिनिधि भी अपने हैं। बस बदला है तो सिर्फ वक्त, इंसान और उसकी आदत।
(पीड़ा बीजेपी के ही कुछ कार्यकर्ताओं की है मेरे सिर्फ शब्द हैं)




