अच्छे नाविक साबित हुए शिशिर सिंह!
(लगभग डेढ़ वर्ष पहले एक मैग्जीन के सम्पादक ने मुझसे सूचना विभाग और शिशिर जी की कार्यप्रणाली पर स्टोरी लिखने के लिए कहा था, मैंने ये स्टोरी लिखी लेकिन मुझे नहीं पता क्या कारण रहे सम्पादक जी ने स्टोरी छापी नहीं बस टालते रहे। सरकार के 8 साल पूरे हो रहे हैं इसलिए आज मुझे लगा कि इसे लगा देना चाहिए।)

- “सूचना निदेशक शिशिर सिंह की पहली पोस्टिंग अंबेडकर नगर जिले में बतौर एसडीएम हुई थी। जिस समय तहसील में वह एसडीएम बनकर गए वहां 5 से 6 वकीलों का एक गुट उनके खिलाफ हो गया। एक समय ऐसा आया कि इस ग्रुप के दो वकील अचानक बीमार पड़ गए, अच्छे इलाज के लिए उनके पास पैसे भी नहीं थे ऐसे में जब बतौर एसडीएम शिशिर को ये बात पता लगी तो उन्होंने तहसील के उन्हीं वरिष्ठ वकील के माध्यम से न सिर्फ आर्थिक मदद पहुंचाई बल्कि उनका हालचाल भी लिया।”
लखनऊ। किसी भी नाविक की कार्यकुशलता तभी प्रमाणित होती है जब वह नाव को दरिया के एक छोर से दूसरे छोर तक सकुशल पहुंचा दे। साल 2019 का लोकसभा चुनाव हो या फिर साल 2023 का विधानसभा चुनाव, सूचना विभाग सरकार की योजनाओं को जन जन तक प्रसारित करने में कामयाब रहा है। यही वजह है कि साल 2018 में बतौर सूचना निदेशक के तौर पर आए शिशिर सिंह न सिर्फ सीएम योगी के चहेते अफसरों की फेहरिस्त में शामिल हो गए बल्कि तीन अलग अलग व्यक्तित्व वाले प्रमुख सचिवों के साथ तालमेल बिठाने में भी कामयाब रहे हैं। अब तक इस कुर्सी पर 7 साल कोई भी अफसर नहीं टिक पाया है। यह कुर्सी ही ऐसी है यहां खुशमिजाज व्यक्ति भी चिड़चिड़ा हो जाता है। जो भी इस कुर्सी पर बैठा है वह भली भाति इससे परिचित होगा। यूपी के सूचना विभाग को संभालना नाको चने चबाने जैसा ही है। हालांकि जिम्मेदारी कोई भी हो निर्वहन करना आसान नहीं होता, लेकिन यहां पग-पग पर नई चुनौती है और उससे निपटना बहुत मुश्किल। समग्र चेतना ने कई अधिकारियों, कर्मचारियों और पत्रकारों से सिर्फ यही सवाल किया है कि क्या शिशिर सिंह अच्छे नाविक साबित हुए हैं? इस सवाल के जवाब में जो कुछ सामने आया, जो भी संस्मरण रहे उन्हें बिना किसी लाग लपेट के सिर्फ शब्द दिए गए हैं।
“समग्र चेतना लगातार ऐसे अफसरों की तलाश में रहता है जिन्होंने अपनी कार्यकशलता और कमर्ठता से व्यवस्था में नवाचार लाने की कोशिश की है।”

सूचना विभाग के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब एक एक कर्मचारी, अधिकारी से पूछकर उसका तबादला किया गया। उद्देश्य साफ था कि किसी को मानसिक तनाव न हो और शासकीय कार्य भी प्रभावित न हो। यही वजह है कि तबादले के बाद मुख्यालय में एक भी शिकायत नहीं आई। पहली बार सभी जिलों में संसाधनों की आपूर्ति भी आवश्यकतानुसार की गई। जनपदीय कार्यालयों को सशक्त करने के लिए वाहन, कम्प्यूटर, कैमरा, फोटोस्टेट मशीन भी उपलब्ध कराई गई। इतना ही नहीं समय पर बाबू कैडर से लेकर सूचना अधिकारियों एवं अपर सूचना अधिकारियों का प्रमोशन किया गया। कर्मचारियों एवं अधिकारियों को समय समय पर मिलने वाला व्यक्तिगत लाभ जैसे समयमान, वेतनमान भी बिना किसी रुकावट के दिया गया। कर्मचारियों से सूचना निदेशक की बॉन्डिंग कितनी मजबूत है इसका अंदाजा एक वरिष्ठ पत्रकार के किस्से से लगाया जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि एक बेहद करीबी बाबू से सूचना निदेश्क से संबंधित जानकारी मांगा तो उसने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि साहब से जुड़ा कोई भी कागज नहीं दे सकते। चाहें तो आप आरटीआई मांग लीजिए। बहुत दबाव के बाद भी उसने मौखिक आंकड़े तो बता दिए लेकिन कोई कागज नहीं दिया। एक कर्मचारी से हमने बातचीत की तो उसने यहां तक कह दिया कि ये (सूचना निदेशक) पहले ऐसे अधिकारी हैं जिनके बारे में कुछ लिखाने और बताने की इच्छा हो रही है।

‘काम बोलता है’ सूचना निदेशक की कार्यशैली बस इसी एक वाक्य के आस पास घूमती दिखाई देती है। साल 2017 में पहली बार पूर्ण बहुमत में सीएम योगी की सरकार बनी और 2018 में तत्कालीन सूचना निदेशक उज्जव कुमार को हटाकर शिशिर सिंह को सूचना निदेशक की जिम्मेदारी दी गई। किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि वह सरकार के लिए इस कुर्सी पर बैठने वाले अब तक के सबसे ज्यादा उपयुक्त व्यक्ति साबित होंगे। किसी प्रदेश में सूचना विभाग सरकार और मुख्यमंत्री के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। सरकार की कार्यप्रणाली, समस्त योजनाओं के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी इसी विभाग की रहती है। निदेशक की कुर्सी पर बैठने वाले व्यक्ति की कार्यकुशलता पर ही निर्भर है कि वह आज के दौर में किन किन माध्यमों से कैसे भी सरकार के कार्याें, योजनाओं को जनता तक पहुंचाए। यूपी के बलिया निवासी शिशिर सिंह के लिए यह जिम्मेदारी आसान नहीं थी, लेकिन उन्होंने कर दिखाया। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सीएम योगी ने अपनी कमर्ठता से वह काम किये जहां तक लोगों की सोच भी नहीं थी। चाहे माफियाओं के खिलाफ सख्त रूख हो या फिर कानून व्यवस्था। यूपी की करीब 24 करोड़ आबादी के बीच ही नहीं आज समूचे देश और विदेशों में भी योगी की लोकप्रियता देखी जा सकती है। इसके पीछे सूचना विभाग की भी महती भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालही में सम्पन्न हुआ महाकुंभ की सफलता में भी इस विभाग की महती भूमिका रही है।

21वीं सदी में सोशल मीडिया पर बिना पैठ जमाए विश्व का कोई भी नेता, दल या संस्था जन जन तक नहीं पहुंच सकता। शिशिर सिंह ने निदेशक की कुर्सी पर बैठते ही इस दिशा में जमकर कार्य किया। सीएम योगी ने सितंबर 2015 में ट्विटर पर अपने आधिकारिक हैंडल की शुरुआत की थी। उस वक्त वह सांसद थे। 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद जिस तरह उन्होंने प्रदेश में विकास और सुशासन के साथ ही कानून व्यवस्था में व्यापक सुधार करके दिखाया, उसके बाद उनकी लोकप्रियता में गुणात्मक वृद्धि देखी गई। वैसे से सीएम योगी की पॉपुलारिटी उनकी मेहनत और कार्यप्रणाली से है लेकिन ट्विटर (एक्स) पर साल 2018 से उनके फॉलोअर्स में तब इजाफा शुरू हुआ जब शिशिर सिंह सूचना निदेशक के पद पर आए। देखते ही देखते सीएम योगी के ट्विटर पऱ फॉलोअर्स का आंकड़ा बढ़ने लगा। वर्तमान में उनके 31.5 मिलियन फॉलोवर्स हैं। इसी के साथ सीएम योगी उस क्लब का हिस्सा बन गए, जिसमें पीएम मोदी और अमित शाह जैसे दिग्गज नेता भी शामिल हैं।

सोशल मीडिया पर आज सीएम योगी की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हो रहा है। बीते 5-6 सालों में सोशल मीडिया पर वह बड़े बड़े सेलिब्रिटी को भी पीछे छोड़ चुके हैं। सीएम योगी अब ऑफलाइन के साथ ही ऑनलाइन भी लोगों से संवाद करते हैं। वह ट्विटर समेत फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्वदेशी सोशल मीडिया एप कू पर काफी एक्टिव हैं। उनकी गिनती सोशल मीडिया पर सर्वाधिक एक्टिव सीएम और राजनेता के रूप में होती है। आज सोशल मीडिया पर कभी बाबा का बुल्डोजर ट्रेंड करता है तो कभी यूपी सरकार की महत्वपूर्णं योजना। बुल्डोजर की मांग तो आज देष के विभिन्न राज्यों ही नहीं विदेशों में भी मांग हो रही है। यह सब कर पाना इतना आसान नहीं है। इसको लेकर बकायदा एक बड़ी टीम कार्य कर रही है। जिसे खुद सूचना निदेशक मॉनीटर करते हैं। कमर्ठता ही नहीं उनकी संवेदनशीलता भी कम नहीं है। एक वरिष्ठ वकील के पुत्र ने बातचीत के दौरान हमशे एक वाक्या साझा किया।
बात साल 1997-98 की है। शिशिर सिंह की पहली पोस्टिंग अंबेडकर नगर जिले में बतौर एसडीएम हुई थी। जिस समय तहसील में वह एसडीएम बनकर गए वहां 5 से 6 वकीलों का एक गुट उनके खिलाफ हो गया। एक समय ऐसा आया कि इस ग्रुप के दो वकील अचानक बीमार पड़ गए, अच्छे इलाज के लिए उनके पास पैसे भी नहीं थे ऐसे में जब बतौर एसडीएम शिशिर को ये बात पता लगी तो उन्होंने तहसील के उन्हीं वरिष्ठ वकील के माध्यम से न सिर्फ आर्थिक मदद पहुंचाई बल्कि उनका हालचाल भी लिया। उन वरिष्ठ वकील के पुत्र पिछले कुछ महीने तक सूचना विभाग में ही अच्छी पोस्ट पर कार्यरत रहे हैं। इतना हीं नहीं उन्होंने एक किस्सा और बताया कि एक बार डायरेक्टर ने उन्हें किसी के कहने पर गुस्से में डाट दिया, लेकिन रात्रि लगभग 9 बजे फोन करके कहा कि मुझसे ऐसा होता नहीं है आज जैसे मैं तुम्हारे साथ पेस आया मैं कभी ऐसा नहीं करता अगर तुम्हे जरा भी कष्ट हुआ हो तो मुझे माफ करना। अधिकारी ने बताया कि इस घटनाक्रम के बाद डायरेक्टर सर मुझे बहुत मानने लगे थे। इतना ही नहीं सूचना निदेशक को लेकर विभाग में यह चर्चा आम है कि वह समस्याओं के तत्काल निराकरण के लिए प्रसिद्ध हैं।
चर्चा है कि उनके अब तक के कार्यकाल में किसी भी कर्मचारी का अहित नहीं हुआ। उनका मानना है कि किसी का कभी उत्पीड़न नही होना चाहिए। इसकी तस्दीक इस बात से होती है कि जून माह में जिलों में कई विभाग में तबादले हुए लेकिन किसी को कोई समस्या नहीं हुई। 26 आईओ आयोग से आए, उनकी पोस्टिंग भी ऐसे की गई कि कहीं कोई शिकायत नहीं आई। उच्च अधिकारियों से लेकर अपने आधिनस्थ कार्यरत कर्मचारियों तक में उनका तालमेल देखने लायक है। विभागीय लोगों का कहना है कि इतिहास में पहली बार जिलों में चपरासी से लेकर डीआईओ तक के स्थानान्तरण उनकी सुविधा के अनुसार किए गए हैं। ताकि किसी को मानसिक तनाव न हो और शासकीय कार्य में कोई बाधा न पहुंचे। इस कुर्सी पर पहली बार कोई ऐसा अफसर बैठा है जो सबको साथ लेकर चलने पर विष्वास करता है। जिलों में मूलभूत संसाधनों की आपूर्ति का मामला हो या फिर कर्मचारियों की पोस्टिंग की समस्या सबका समाधान सब समय पर किया गया है। यही वजह है कि साल 2018 में कुर्सी संभालने वाले सूचना निदेशक शिशिर सिंह सबके चहेते हो गए हैं। कोरोना काल में उत्तर प्रदेश में तमाम युवा और वरिष्ठ पत्रकारों को अपनी जान गवानी पड़ी।
ऐसे में उनके परिवार की स्थिति को देखते हुए उन्हें 10- 10 लाख रुपए बतौर आर्थिक सहायता दिलाने में सूचना निदेशक की महत्वपूर्णं भूमिका रही। वह लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस विषय को लेकर अवगत कराते रहे नतीजा उत्तर प्रदेश के 103 दिवंगत पत्रकारों के परिवारों को मुख्यमंत्री आर्थिक सहायता राशि प्रदान की गई। एक समय ऐसा था जब उत्तर प्रदेश देश की राजधानी दिल्ली में होने वाली 26 जनवरी की झांकी में शामिल तक नहीं हो पाता था। साल 2018 में जब बतौर सूचना निदेशक के रूप में शिशिर सिंह ने जिम्मेदारी संभाली तो अगले ही साल न सिर्फ यूपी 26 जनवरी की झांकी में सम्मिलित हो पाया बल्कि प्रथम स्थान प्राप्त करके सबको चौका दिया। उत्तर प्रदेश ने लगातार 2 बार प्रथम और 2 बार द्वितीय स्थान हासिल किया है। सूचना निदेशक की कार्यकुशलता का आंकलन इसी बात से किया जा सकता है कि दो प्रमुख सचिव उनके सामने आए और चले गए। तीसरे के साथ भी उनका अच्छा तालमेल बताता है कि वह हर स्थिति में काम कर सकते हैं।
1997 बैच के ऑफिसर शिशिर सिंह पूर्व सरकारों में भी महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं। साल 2019 में पीसीएस से आईएएस बने शिशिर सिंह सपा और बसपा सरकार में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में डीसीओ, नोएडा में एडीएम और लखनऊ में हिंदी संस्थान के डायरेक्टर, सांस्कृतिक विभाग के डायरेक्टर और भाषा विभाग में विशेष सचिव रह चुके हैं। वह न सिर्फ पत्रकारों बल्कि किसी भी अन्य विभागों के अफसरों से भी तालमेल बैठाकर चलते हैं। सबको टीम भावना की तरह से देखना, फोन उठाना, सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना बताता है कि वह अपने काम को लेकर कितना संजीदा हैं। इस पूरे आर्टिकल में एक भी प्रसंग लेखक के नहीं हैं तकरीबन 25 कर्मचारियों, अधिकारियों से बातचीत के बाद निकले संस्मरणों को सिर्फ षब्द दिए गए हैं। समग्र चेतना ऐसे अधिकारियों की कार्यप्रणाली आपके सामने इसलिए ला रहा है ताकि समाज में अच्छा संदेशि जाए और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर बैठे अफसर भी अपनी कमर्ठता दिखाने के लिए प्रेरित हो सकें।
कभी तनाव नहीं देते
मेरा ये 14वां साल है नौकरी का, जिसमें 3 साल छोड़ दीजिए। किसी ऑफिस के हम भी महत्वपूर्ण अंग होते हैं। नंबर दो नंबर तीन पर रहते हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि ऑफिस का तनाव घर पर भी बना रहता है कि कल साहब क्या कहेंगे। सोते हुए भी याद आता रहता है कि कल अधिकारी क्लास न ले ले, लेकिन साहब(सूचना निदेषक) जब से आए कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ। बहुत षानदार व्यक्ति हैं अगर किसी पर गुस्सा हो गए तो अगले ही पल उसके लिए कुछ बहुत अच्छा कर देंते हैं। ऐसे बहुत कम अफसर देखे हैं ये कभी तनाव नहीं देते। हम लोग हमेशा यही प्रयास किए कि कभी कोई मध्यम या छोटे अखबारों का पेमेंट न रोका जाए। हमने विज्ञापन एजेंसियों, बड़े समूह के अखबारों का पेमेंट भले ही रोका लेकिन लघु व मध्यम अखबारों को सबसे पहले भुगतान देने का कार्य किया है। किसे सबसे ज्यादा नीड है। जैसे एक करोड़ रुपए बजट है इसमें 100 पेपर और एक विज्ञापन एजेंसी का पेमेंट है तो 100 अखबारों को पहले देते हैं। किसी भी तरीके से किसी को भी समस्याएं न हो। साहब का भी यही मानना है कि छोटे अखबारों को पहले पेमेंट किया जाए।
पूर्व सीएफओ
जीवकोपार्जन का केंद्र
पत्रकारों के लिए सूचना विभाग शहद से लबरेज मधुमक्खी का छत्ता है और इस छत्ते से हर कोई रस निकालने की फिराक में रहता है। हालांकि इस रस की प्राप्ति इतनी आसान नहीं है। क्योंकि छत्ते की निगेबानी के लिए यहां रानी नहीं राजा तैनात है। कहा जाता है कि यहां का राजा निदेशक होता है। राजा समय समय पर बदलता भी रहता है। बहरहाल वर्तमान में शिशिर सिंह राजा की भूमिका में हैं। सूचना विभाग में हमेशा दिखने वाले करीब 400 पत्रकार तो ऐसे हैं जिनके लिए विभाग बिल्कुल अपने घर जैसा ही है, निजी आवास पर वह सोने मात्र जाते हैं बाकी का समय वह इसी घर में व्यतीत करते है वहीं सूचना निदेशक बॉर्डर से घर लौटने वाले जवान की तरह, जिसके आगमन की आस में घर का हर सदस्य व्याकुल रहता है। हर रोज जवान के आते ही मेल मिलाप समारोह की शुरुआत होती है। कभी तीखा, कभी मीठा, कभी खट्टा तो कभी नमकीन अलग-अलग पत्रकार रोज मिलाप के बाद अपने अनुभव साझा करता है। कभी सोफे पर बैठकर तो कभी स्टैंड पर खड़े होकर तो कभी पास ही लगे ठेले पर चाय की चुस्की के साथ यही चर्चा रहती है कि फला तारीख को साहब ने दो घंटे तक लिखा।
आज लोकभवन में भी कुछ लोगों को लिखा है। अरे जाने नहीं! फलाने को तो आरोह भी मिल गया, जिन्हें कुछ मिल जाता है वह अब और कैसे मिलेगा इसको लेकर व्याकुल दिखते हैं जिन्हें नहीं मिला वह इस इंतजार में व्याकुल दिखते हैं कि कब मिलेगा। बहरहाल चोहलबाजी करना अलग बात है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन 400 से ज्यादा पत्रकारों ने अपना आधा जीवन इसी विधा में खपा दिया है सैकड़ों छोटे- मंझोले समाचार पत्रों के पत्रकारों के परिवारों के जीवकोपार्जन का यह केंद्र है। ऐसे में हर किसी को उम्मीद रहती है इस कुर्सी पर वही बैठे जो सिर्फ नाम का नहीं बल्कि दिल का भी राजा हो, ताकि ऐसे तमाम छोटे मंझोले समाचार पत्र भी पल्लवित पोषित होते रहें।




