जब मातहतों के भरोसे ही चलनी है पुलिसिंग तो फिर कमिश्नर की क्या जरूरत

जब मातहतों के भरोसे ही चलनी है पुलिसिंग तो फिर कमिश्नर की क्या जरूरत
पहले पुलिस कमिश्नर के कार्यकाल में अन्य जिलों के लिए उदाहरण बनी लखनऊ की ट्रैफिक व्यवस्था हुई पूरी तरह ध्वस्त
अपराधी और पुलिस दोनो बेलगाम
कमरे में बैठ कर लखनऊ चला रहे हैं कमिश्नर साहब
समग्र चेतना/ राहुल तिवारी
लखनऊ। राजधानी में कानून व्यवस्था तो ध्वस्त है ही साथ ट्रैफिक व्यवस्था भी दम तोड़ रही है। लगता नही ये वही शहर है जहां के लोगों ने सिग्नल ट्रैफिक के नियम को अपनी जरूरत में शुमार कर लिया था पर आज हालात यह हैं की कुछ एक जगह छोड़ दें तो बाकी सभी चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल खराब पड़े हैं और स्थानीय पुलिस हो या फिर ट्रैफिक पुलिस वे भी यातायात के सुचारू संचालन की ओर ध्यान देना जरूरी नही समझते हैं।
यहां तक लखनऊ की मंडलायुक्त रोशन जैकब भी ध्वस्त ट्रैफिक व्यवस्था पर नाराजगी जता चुकी हैं पर इसके बाद भी कमिश्नरेट पुलिस ने इस ओर कोई काम नही किया।
योगी सरकार में लखनऊ से कमिशनरेट पुलिसिंग की शुरुआत हुई थी और लखनऊ के पहले पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडे ने कानून व्यवस्था को मजबूत बनाने के साथ ही लखनऊ की ट्रैफिक व्यवस्था को सिग्नल प्रणाली लाकर व्यवस्थित किया था कई मार्गों पर वन वे सिस्टम भी लागू किया गया था जिससे लोगों को जाम की समस्या से काफी हद तक राहत मिल गई थी।
राजनीतिक खींचतान के चलते सुजीत कुमार पांडेय को हटा कर लखनऊ की कमान आईपीएस डीके ठाकुर को सौंपी गई। डीके ठाकुर के कार्यकाल कुछ विशेष नही हुआ तो बिगाड़ भी नही हुआ। डीके ठाकुर ने मठाधीश वर्दीधारियों के तबादले करने के साथ ही थानों के जबरदस्त तरीके से औचक निरीक्षण किए जिससे उनकी टीम भी मुस्तैद हुई। वर्तमान में लखनऊ की कमान एबी शिरोडकर के हांथ में है जो अब तक के कार्यकाल में पूरी तरह से फ्लाप साबित हुए हैं। श्री शिरोडकर ऐसे पुलिस कमिश्नर हैं जिनकी शक्ल भी शायद ही लखनऊ वासी पहचानते हों कारण है की वे सिर्फ कमरे में बैठ कर लखनऊ पुलिस की कप्तानी कर रहे हैं जिससे पुलिस भी बेलगाम है और अपराधियों के भी हौसले बुलंद हैं।
ट्रैफिक व्यवस्था के क्या कहने वह तो राम भरोसे ही चल रही है लखनऊ का शायद ही कोई चौराहा हो जिसपर जाम से लोगों को जूझना ना पड़ रहा हो। जब लखनऊ के वीआईपी इलाके में शुमार हजरतगंज जहां खुद पुलिस कमिश्नर का सरकारी आवास है वहीं पर ट्रैफिक सिग्नल महीनों से खराब पड़े हैं और यातायात का संचालन भगवान भरोसे हो रहा है तो बाकी शहर का हाल आसानी से समझा जा सकता है।जब मातहतों के भरोसे ही पुलिस प्रशासन चलना है तो फिर कमिश्नर की क्या जरूरत। सीएम योगी को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना होगा की लखनऊ की कमान ऐसे तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी को सौंपी जाए जिससे यहां के लोगों का पुलिस पर भरोसा बड़े और व्यवस्था भी सुधरे।
आखिर तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी सुजीत कुमार पांडेय को वनवास में रखने का क्या मतलब है इसका जवाब भी शायद किसी शासन के अफसर के पास नही है।




