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लक्षित 84,498 गर्भवती और 75,860 धात्री महिलाओं को दी गईं दवाएं

– आयरन, कैल्शियम, एलबेंडाजोल व फॉलिक एसिड का हुआ मुफ्त वितरण 
– एनीमिया मुक्त बनाने और सुरक्षित प्रसव को लेकर सितंबर माह में चला अभियान
– गर्भवती की सुरक्षा को एक से 30 सितंबर तक चलेगा जागरूकता अभियान 
– बेहतर स्वास्थ्य व सही पोषण के संबंध में दी गई जानकारी   

सीतापुर। मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए एक से 30 सितंबर तक ‘एक कदम सुरक्षित मातृत्व की ओर’ अभियान का संचालन किया गया। स्वास्थ्य विभाग के मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत चलाए गए इस अभियान के तहत गर्भावस्था और प्रसवोपरांत महिलाओं के पोषण पर विशेष जोर दिया गया। इस दौरान आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर गर्भवती और धात्री महिलाओं को चिन्हित कर सूचीबद्ध करने का काम किया, जिससे की इन महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य को लेकर समय-समय पर उनका फालोअप किया जा सके।

सीएमओ डॉ. मधु गैरोला ने बताया कि गर्भवती को एनीमिया मुक्त बनाने और सुरक्षित प्रसव को ध्यान में रखते हुए इस अभियान का संचालन किया गया है। अभियान के पहले चरण में एक से 24 सितंबर तक सभी स्वास्थ्य इकाइयों की ओपीडी व मुख्यमंत्री जन आरोग्य मेला, प्रधानमंत्री सुरक्षित  मातृत्व अभियान व वीएचएसएनडी सत्र के माध्यम से लाभार्थियों को जागरूक किया गया। इस दौरान जिले भर की लक्षित 84,498 गर्भवती और 75,860 धात्री महिलाओं को उनकी आवश्यकतानुसार फोलिक एसिड, आयरन फोलिक एसिड, कैल्शियम और एलबेंडाजाेल की गोलियां वितरित की गईं। अभियान के दूसरे चरण में 25 से 31 सितंबर तक माॅपअप सप्ताह के तहत क्षेत्र की छूटी हुई गर्भवती व धात्री महिलाओं को आयरन, कैल्शियम, फोलिक एसिड व एलबेंडाजोल की गोलियों के वितरण के साथ ही स्वास्थ्य व पोषण संबंधी जानकारियां व सेवाएं दी गईं। सीएमओ ने बताया कि सही तरीके से खानपान न होने अौर अत्यधिक मात्रा में फास्ट फूड के सेवन से महिलाओं को खून की कमी से जूझना पड़ रहा है। सबसे अधिक परेशानी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान उठानी पड़ती है। इन सभी मुश्किलों से निजात दिलाने के लिए ही इस अभियान का संचालन किया गया है।

एनीमिया को लेकर आई सजगता 
जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता उपेंद्र सिंह यादव ने बताया कि बीते चार सालों की बात करें तो एनीमिया (खून की कमी) की गंभीरता को भी महिलाओं ने अच्छी तरह से समझा है। एनएफएचएस-5 के अनुसार प्रसव के दौरान एनीमिया को लेकर उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके चलते 18 फीसद महिलाओं ने कम से कम 100 दिन और 9.6 प्रतिशत महिलाओं ने कम से कम 180 दिनों तक आयरन फोलिक एसिड का प्रयोग किया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आकड़ा क्रमश: 5.1 और 1.5 प्रतिशत ही था।

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