लखनऊ पब्लिक स्कूल में गोष्ठी का आयोजन

राहुल तिवारी
लखनऊ।वैशाख शुक्ल पंचमी को बाबा केदारनाथ के कपाट खोल दिए जाते हैं। इस दिन की दिव्यता और महत्वता इससे और बढ़ जाती है कि इसी दिन भगवान आदि शंकराचार्य के 1235 वें प्राकट्य (वैशाख शुक्ल पंचमी 788 ईसवी) दिवस को हुआ था।
पृथ्वी के दो अद्भुत संयोग, कहते हैं शंकराचार्य पुष्प अवशेष ही केदारनाथ ज्योति लिंग में प्राप्त हुए थे।
बात यदि भारत की ही की जाए तो अखंड भारत का सपना सदियों पहले शंकराचार्य ने सनातन धर्म को दिखाया था क्या हम उनके सपनों को साकार कर पाए या भारत की अखंडता को अक्षुण्ण रख पाए आप अपने दिल से पूछो उत्तर आएगा नहीं।
इतिहास के पन्नों में ही नहीं वर्तमान परिपेक्ष में भी आदिशंकरचार्य भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। जिस समय सनातन धर्म में बौद्ध धर्म का प्रभाव जोरों पर हो रहा था लोग धर्म परिवर्तन कर रहे थे उसी समय युगप्राणेता ने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया। उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं। वे चारों स्थान ये हैं- ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और पुरी गोवर्धन पीठ।
ये भगवान शंकर के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है।
चारों वेद और छह प्रकार के शास्त्र या क्या सकते हैं 32 प्रकार की विद्या के प्रभेद और 32 कलाओं के प्रभेद सब के सब सुरक्षित रहें इसलिए एक एक वेद से संबंध करके एक एक शंकराचार्य पीठ की स्थापना की गई जैसे ऋग्वेद से गोवर्धन पीठ मठ (जगन्नाथ पुरी ),यजुर्वेद श्रृंगेरी( रामेश्वर), सामवेद से शारदा मठ (द्वारिका) और अथर्ववेद से संबंध ज्योतिर मठ (बद्रीनाथ) है।




