सूचना विभागः मुस्कुराते चेहरे पर झुर्रियां आ जाएंगी ‘साहब’


लखनऊ। अगर ब्लड प्रेसर लो है तो हाई हो जाएगा। खुशमिजाज व्यक्ति भी चिड़चिड़ा हो जाएगा। अगर रोगमुक्त है तो पक्का रोगयुक्त हो जाएगा। यह जगह ही कुछ ऐसी है, जिसने भी इसका मजा लिया है वह भली भाति परिचित होगा। यूपी के सूचना विभाग को संभालना ‘नाको चने चबाना’ जैसा ही है। हालांकि जिम्मेदारी कोई भी हो निर्वहन करना आसान नहीं होता, लेकिन यहां पग-पग पर नई चुनौती है। विभाग के सबसे बड़े अफसर एक दिवसीय दरबार लगाकर उन चुनौतियों से कितना रूबरू हो पाए होंगे यह वहीं जाने, लेकिन अगर वह आने वाले समय में महीने में चार दिन भी विभाग में बैठने की जहमत उठाएंगे तो साल भीतर ही उनके चमकते चेहरे की रंगत बदली नजर आने लगेगी।
हिन्दी में एक कहावत है ‘जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई’। बीते शुक्रवार को प्रमुख सचिव सूचना, संजय प्रसाद अचानक सूचना विभाग पहुंच गए। सुबह लगभग 10 बजे विभाग पहुंचे प्रमुख सचिव दोपहर लगभग 3 बजे तक रुके। उन्होंने विभाग का हाल जाना कई लोगों से मिले भी। उनके आने के बाद कई बदलाव भी देखने को मिले जैसे ग्राउंड फ्लोर पर पत्रकारों की बैठकी अब और चमचमा उठी है।
फ्लोर पर सिर्फ नई मैट ही नहीं बिछी है बल्कि मैले हो चुके सोफे भी जगमगा रहे हैं। अब एसी भी खूब चिल्ड करता है। हालांकि इस दौरान प्रमुख सचिव उस हुजूम से वंचित रह गए जिससे सूचना निदेशक हर रोज दो चार होते हैं। यह हुजूम कोई मामूली नहीं है बल्कि एक से एक धुरंधर लगभग 400 पत्रकारों का संगम है जो मन में विज्ञापन की उम्मीद सजाए निदेशक के एक दीदार, मुलाकात को हर रोज व्याकुल रहता है। इन पत्रकारों का नेटवर्क इतना स्ट्रॉन्ग है कि निदेशक के आगमन से पहले ही इन्हें सूचना मिल जाती है।
इतना ही नहीं इन्हें तो यह तक पता रहता है कि साहब ने बीती रात डिनर में क्या लिया था। वह किस रंग के कपड़े पहनकर आने वाले हैं, कितने बजे कहां कहां रहेंगे, क्योंकि इन पत्रकारों ने साहब के धोबी, मोची, शेफ से लेकर ड्राइवर तक को पकड़ रखा है। निदेशक अगर सूचना विभाग में हैं तो ग्राउंड पर लगे सोफे से लेकर सिक्स फलोर की गैलरी तक फुल हो जाती है। साहब के पसीने छूट जाते हैं लेकिन हुजूम सिमटने के बजाए बढ़ता ही रहता है।
इनसे वार्तालाप और फिर इन्हें संतुष्ट करना आसान नहीं है, क्योंकि इस समागम में कुछ अति मधुर टाइप होते हैं तो कुछ खखेड़ी वहीं कुछ कोबरा से भी ज्यादा फुंकार भरे रहते हैं (जिनका विज्ञापन छूट जाता है)। बारी बारी सबको स्कैन करना, सबको मैनेज करते हुए व्यवस्था बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस कशमकश से सचिव साहब वंचित रह गए। अब उनके विभाग में एक दिवसीय आगमन से ज्यादा चर्चा का विषय यही हुजूम है जो शुक्रवार को गायब था।
वजह क्या है पता नहीं लेकिन चर्चा अब यही हो रही है कि मौका और दस्तूर दोनो थे फिर भी निदेशक से मिलने को आतुर रहने वाले पत्रकार प्रमुख सचिव से मिलने क्यों नहीं पहुंचे। दरअसल कई पत्रकारों के लिए सूचना विभाग शहद से लबरेज मधुमक्खी का छत्ता है और इस छत्ते से हर कोई रस निकालने की फिराक में रहता है।
हालांकि इस रस की प्राप्ति इतनी आसान नहीं है। क्योंकि छत्ते की निगेबानी के लिए यहां रानी नहीं राजा तैनात है। कहा जाता है कि यहां का राजा निदेशक होता है। राजा समय समय पर बदलता भी रहता है। बहरहाल वर्तमान में शिशिर सिंह राजा की भूमिका में हैं। सूचना विभाग कुछ पत्रकारों के लिए अपने घर जैसा ही है, निजी आवास पर वह सोने मात्र जाते हैं बाकी का समय वह इसी घर में व्यतीत करते है वहीं सूचना निदेशक बॉर्डर से घर लौटने वाले जवान की तरह, जिसके आगमन की आस में घर का हर सदस्य व्याकुल रहता है।
हर रोज जवान के आते ही मेल मिलाप समारोह की शुरुआत होती है। कभी तीखा, कभी मीठा, कभी खट्टा तो कभी नमकीन अलग-अलग पत्रकार रोज मिलाप के बाद अपने अनुभव साझा करता है। कभी सोफे पर बैठकर तो कभी स्टैंड पर खड़े होकर तो कभी पास ही लगे ठेले पर चाय की चुस्की के साथ यही चर्चा रहती है कि फला तारीख को साहब ने दो घंटे तक लिखा। आज लोकभवन में भी कुछ लोगों को लिखा है। अरे जाने नहीं! फलाने को तो आरोह भी मिल गया, जिन्हें कुछ मिल जाता है वह अब और कैसे मिलेगा इसको लेकर व्याकुल दिखते हैं जिन्हें नहीं मिला वह इस इंतजार में व्याकुल दिखते हैं कि कब मिलेगा।
बहरहाल गप्पबाजी करना अलग बात है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन 400 से ज्यादा पत्रकारों ने अपना आधा जीवन इसी विधा में खपा दिया है सैकड़ों छोटे- मंझोले समाचार पत्रों के पत्रकारों के परिवारों के जीवकोपार्जन का यह केंद्र है।
ऐसे में हर किसी को उम्मीद रहती है इस कुर्सी पर वही व्यक्ति बैठे जो सिर्फ नाम का नहीं बल्कि दिल का भी राजा हो, ताकि ऐसे तमाम छोटे मंझोले समाचार पत्र भी पल्लवित पोषित होते रहें। इनकी पीड़ा, वेदना को भी न सिर्फ समझा जाए, बल्कि समाधान भी निकाला जाए।




