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महाभारत काल की लोकप्रियता संजोए बैठा तिलपत गांव का बाबा सूरदास मंदिर

तिलपत – सन 1600 में मुग़ल बादशाह (औरंगज़ेब) के समय तिलपत को तिलपत गढ़ी के नाम से पुकारा जाता था व हमारा प्राचीन तिलपत गांव इतिहास से जुड़ा रहा है। इसमें महाभारत युग से पहले का प्राचीन इतिहास और संस्कृति शामिल है जो तिलपत गाँव की धरती के गर्भाशय में मौजूद है। जब द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने कौरव और पांडव के बीच समझौता किया, तो समझौते के अनुसार पांडवों को खांडव प्रस्थ का राज्य मिला पांडवो नू एक सुंदर शहर बनाया था जो “इंद्रप्रस्थ” नाम के खांडव प्रस्थ की राजधानी थी, जिसका प्रमाण वर्तमान में राजधानी दिल्ली में “पुराना किला” के नाम से मौजूद है। उस समय तिलपत ग्राम राजधानी इन्द्रप्रस्थ के अधीन प्रथम लोकप्रिय ग्राम था।

पांडवों (महाभारत युग में) की राजधानी इंद्रप्रस्थ के शीर्ष पांच गांव (“पंच पट”) इस प्रकार थे कि तिलप्रस्थ (अब जिला फरीदाबाद (हरियाणा) में तिलपत गांव के रूप में जाना जाता है) पड़वाप्रस्थ (अब हरियाणा में पानीपत जिले के रूप में जाना जाता है) सोनाप्रस्थ (अब हरियाणा में सोनीपत जिले के रूप में जाना जाता है)

बाहकप्रस्थ (अब उत्तर प्रदेश में बागपत जिले के रूप में जाना जाता है) मारीप्रस्थ (अब मारीपत के नाम से जाना जाता है)
उन्हीं में से एक गांव तिलपत जो वर्तमान में फरीदाबाद नगर निगम का एक वार्ड है प्राचीन समय से अब तिलपत में अधिक बदलाव देखने को मिला है तिलपत अपनी खूबसूरती मैं बंसी वन सूरदास मंदिर गौशाला से पूरे देश में चर्चित हैं तिलपत में बनी गौशाला मैं खासियत है कि गौशाला लोगों की मदद घर साबित होते हैं जिसमें अगर किसी घर में दवा के लिए दूध नहीं है रोटी के लिए उपले नहीं है तो उन्हें निशुल्क दूध और उपले उपलब्ध कराए जाते हैं इसके अलावा वृद्ध आश्रम भी मौजूद है
दूर-दूर से लोग आते हैं मंदिर के दर्शन करने

गांव में बना सूरदास बाबा का मंदिर एक आस्था का केंद्र बन चुका है जहां पर दूरदराज के लोग निम्नतम मानने के लिए यहां पर आते हैं यहां पर राधा रानी का मंदिर , बंसी वाले का मंदिर , बाबा सूरदास का मंदिर , बाबा सूरदास का समाधि स्थल , तालाब के रूप में बना कुंड , लड्डू गोपाल का मंदिर , पंचमुखी हनुमान मंदिर , भगवान शिव का मंदिर अपनी लोकप्रियता तो पूरे देश में मोती के समान बिखरे हुए हैं
प्रत्येक मंगलवार को मेला लगता है मेले में भजन कीर्तन होते रहते हैं जिसमें भक्त अपनी भक्ति में नाचने लगते हैं और जो बना तालाब के रूप में कुंड जो है लोग कहते हैं कि यहां पर बाबा को मां गंगे ने दर्शन दिए थे उस कुंड में स्नान करने से सारे रोग दूर हो जाते हैं

बाबा सूरदास जी का सूक्ष्म परिचय
श्री श्री 1008 श्री किशोरी शरण जी महाराज बाबा सूरदास तिलपत वाले का जन्म उत्तराखंड राज्य के गथरी गाँव जिला पौड़ी गढ़वाल में ब्राह्मण (पंडित) परिवार में हुआ था। वह जन्म से ही नेत्रहीन था। जब वे 7 वर्ष के थे, तो अपना घर छोड़ दिया और रात में उनका परिवार हिमालय पर्वत पर पहुँच गया।

हिमालय पर्वत पर उनकी भेंट एक साधु से हुई और उन्हें अध्यात्म का ज्ञान हुआ। लंबी यात्रा के बाद बाबा ऋषिकेश (उत्तराखंड) में कोयल घाट पर पहुंचे और उन्होंने श्री गंगा जी के तट पर कई वर्षों तक तपस्या की।

एक बार रात को जब वे सो रहे थे तो उन्हें माता वैष्णो देवी के दर्शन की प्रेरणा मिली। इसलिए, सुबह-सुबह वह जम्मू-कश्मीर राज्य के कटरा शहर पहुंचे। माता वैष्णो देवी के दर्शन के बाद बाबा पंजाब राज्य के जिला अमृतसर पहुंचे और राधा बल्लभ का एक बड़ा मंदिर बनवाया। उन्होंने गुजरात, वृन्दावन में राधा बल्लभ मंदिर का भी निर्माण किया।

कई स्थानों की लंबी यात्रा के बाद बाबा वृंदावन पहुंचे और श्री परमानंद जी महाराज से मिले। परमानंद जी महाराज से प्रेरित होकर बाबा सूरदास जी ने अपने गुरु के अनुसार “कंठी मंत्र” प्राप्त किया।
कंठी मंत्र लेकर बाबा वृंदावन से चल पड़े। वे तातारपुर, बघोला, जटोला, देवली, गोकुलपुर जैसे कई स्थानों पर रहे।

तिलपत में सूरदास बाबा का सूक्ष्म परिचय
वर्ष 1931 में बंसी वाले का तालाब (तालाब) के पास बाबा जी प्रकट। श्री खड़किया तिलपत गाँव के व्यक्ति थे जिन्होंने पहली बार बाबा जी को देखा है। बाबा जी एक छड़ी और अपना थैला रखते हैं जिसमें एक पंचमुखी शंख और एक बंसी होती है। श्री खड़किया ने सारा सम्मान दिया और तिलपत में बाबा जी के साथ आए। बाबा तिलपत गांव के शिव मंदिर में पुजारी के रूप में रुके थे। उस समय तिलपत के लोग बाबा जी को नए नाम महाराज जी से पुकारते थे। सर्दियों के मौसम में मनोरंजन के लिए चौपाई (होली गीत) गाने का चलन था जिसमें बाबा जी ढोलक और हारमोनियम बजाते थे।

वह श्री हरिवंश चैतन्य महाप्रभु के अवतार थे लेकिन इस तथ्य के बारे में कोई नहीं जानता था। बाबा जी पवित्र तिथि और समय पर कुटिया और कुआं बनवाते हैं। उन्होंने अपने बाँसुरी द्वारा “महा मंत्र- श्री राधा बल्लभ श्री हरि वंश श्री वृंदावन श्री वन चंद” की भी घोषणा की और इस महामंत्र के साथ लोगों को जागरूक किया। उन्होंने “राधा बल्लभ संप्रदाय” के प्रति सभी लोगों को जागरूक करने और आकर्षित करने के लिए “कीर्तन मंडली” भी बनाई।

हर साल बाबा कई अखंड-कीर्तन और श्री महा भागवत सप्ताह का आयोजन करते हैं और “बाबा सूरदास जी तिलपत वाले” के नाम से प्रसिद्ध हैं। तिलपत गांव को उन्होंने अपना केंद्र बिंदु बनाया है और तिलपत गांव के नियंत्रण में गद्दी बाबा जी ने नजदीकी गांवों में कई मंदिर भी बनवाए जैसे:-ददसिया, लालपुर, महावतपुर, भोपानी, रिवाजपुर, टिकावली, पलवाली, मवई, पल्ला, बल्लभगढ़, जाखोली आटा, जट्टा निठारी, सुंगरपुर, दहिसरा, मंगरोली, भोगल (बृज घाट) ; अंत में श्री श्री 1008 श्री बाबा किशोरी शरण जी महाराज रक्षाबंधन के दिन दिनांक 07 अगस्त 1979 (श्रावण मास पूर्णिमा के विक्रमी समवन्थ 2036) को तिलपत गांव से गौलोक (बकुंठधाम) के लिए प्रस्थान कर गए ।।

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