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सीताराम सीताराम बोलते परिक्रमार्थी पहुंचे पांचवे साखिन गोपालपुर

गंगासागर तर्थी में स्थान कर रामादल हुआ अगले पड़ाव को रवाना

गोंदलामऊ/सीतापुर। बोल कड़ाकड़ सीताराम के उद्घोष के साथ रामादल चौथे पड़ाव स्थल गिरधरपुर उमरारी में रात्रि विश्राम कर अगले दिन पाचवे पड़ाव स्थल साखिन गोपालपुर कूच कर गए। पड़ाव स्थल पर संकीर्तन व कथाओं की गूंज गूंजती रही। दूर दूर से आए श्रृद्धालुओं में आस्था का सैलाव उमड़ पड़ा। श्रृद्धालुओं ने गंगासागर तीर्थ में स्नान किया।रामादल की अगुआई पहला आश्रम के महंत नन्हकू दास महाराज डंका वाले बाबा जी कर रहे हैं।

युगों-युगों से चली आ रही इस चौरासी कोसी परिक्रमा में देश के कोने-कोने से साधु महात्मा अपने अपने भक्तों के साथ शामिल होकर इसकी महिमा का बखान कर यश पुण्य के भागीदार बनते हैं।

पड़ाव स्थल की धार्मिक मान्यता
84 कोसीय धार्मिक परिक्रमा के बारे में मान्यता है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने वनवास काल के दौरान इस क्षेत्र का भ्रमण किया था। उन्होंने जिन-जिन स्थानों पर रात्रि विश्राम किया वहीं परिक्रमा के पड़ाव माने जाते हैं और परिक्रमा दल रामादल के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की स्मृति में ही प्रति वर्ष की फाल्गुन मास में अपने घर परिवार की ईश्वर से मंगल कामना करते हैं। धार्मिक परिक्रमा समाप्त होने के उपरांत यह सामाजिक मेला के रूप में परिवर्तित हो जाता है और लगभग 1 माह तक चलता है।

परिक्रमार्थियों को क्यों कहते हैं रामादल
स्कन्द पुराण के धर्मारण्य खंड में इस बात का उल्लेख है कि भगवान श्रीराम ने अपने परिवार और अयोध्या वासियों के संग इस परिक्रमा को किया था और तभी से इस परिक्रमा को करने वालों को रामादल के नाम से पुकारा जाता है।

क्या है परिक्रमा का महत्व
परिक्रमा के संबंध में कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने लंका विजय प्राप्त कर कुलगुरु के आदेश पर स्वकुटुंबियों सहित नैमिष की चौरासी परिक्रमा की थी, जिससे उन्हें आत्म शांति प्राप्त हुई थी। जिन-जिन स्थानों पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया था। वे स्थल ही पड़ाव स्थल कहलाए। इस संबंध में एक मत यह भी है कि जब देवताओं ने महर्षि दधीचि से अस्थियां लोक कल्याण के लिए मांगी तो उन्होंने समस्त तीर्थाे की परिक्रमा की अपनी रक्षा व्यक्त की थी। इस पर सभी तीर्थों को नैमिष क्षेत्र में आकर विराजमान होने के लिए देवताओं ने आग्रह किया सभी तीर्थ तो आ गए, परंतु तीर्थ राज प्रयाग जी नहीं आए, जिससे देवताओं ने आम सहमति पर नैमिष में ही पंचप्रयाग की स्थापना की।

महर्षि दधीचि ने देवताओं के साथ मिलकर इस चौरासी कोसी परिक्रमा की थी। इस परिक्रमा के संबंध में संतों का मत यह भी है कि मानव शरीर में एकादश इंद्रियां पाई जाती हैं इन इंद्रियों विजय प्राप्त करने के लिए ही संत एवं श्रद्धालु इस परिक्रमा में भाग लेते हैं।

पड़ाव स्थल साखिन गोपालपुर की पौराणिक मान्यता
बताते चले कि पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपने कुटुम्बियों के साथ मिलकर परिक्रमा की थी पड़ाव से तीन किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में गोमती नदी के तट पर श्रृंगी ऋषि का भब्य आश्रम है यहाँ पर श्रद्धालु मंदिर का दर्शन करते है।व साखिन गोपालपुर में भगवान शिव का शखेश्वर आश्रम है भक्त यहाँ पर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है।

आज देवगवाँ ठहरेगा रामादल
परिक्रमार्थी साक्षी गोपालपुर में रात्रि विश्राम कर अगले दिन देवगवाँ (द्रोणाचार्य) नामक स्थान पर पहुँचते है. इस मार्ग में गंगालय, नीलगंगा श्रंगी ऋषि, द्रोणाचार्य पर्वत आदि दर्शनीय स्थल पड़ते है. यहाँ श्रद्धालु गुड़ कटोरा का दान करते है. परिक्रमा अब पुनः सीतापुर जनपद में आ जाता है।

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