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योगी सरकार में कानून का निजीकरण: गौरव कुमार गुप्ता

लखनऊ: केंद्र की मोदी सरकार मैक्सिमम गवर्नेंस मिनिमम गवर्नमेंट फ़ॉर्मूले पर काम कर रही है, इसीलिए फ़ॉर्मूले के तहत देश की तमाम योजनाओं, उद्योग-धंधो का निजीकरण किया जा रहा है, जो देश के खाली पड़े संसाधनो, घाटे में चल रहे उद्योगों को मुख्य धारा में लायेगा और लोगों को रोजगार व अच्छी पारदर्शी सुविधाएं मिल सकेगी।
इसी को देखते हुए लोक निर्माण विभाग में जन सूचना अधिकार का निजीकरण कर दिया। उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग के बरेली क्षेत्र के निर्माण खंड बदायूं ने जन सूचना अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं के निस्तारण में जवाब दिया कि संबंधित सूचनाएं  ठेकेदार पीएनसी इंफ्राटेक लिमिटेड से संबंधित हैं उनकी कंसेंट के बिना सूचना देना संभव नहीं है कंसेंट के लिए पत्र लिखा गया है आने पर सूचना दी जाएंगी और आप पीएनसी इंफ्राटेक से सीधा संर्पक कर सूचनाएं मांग सकते हैं। इसमें कानून की किस धारा के तहत यह किया जा सकता है का वर्णन नही है।
आपको बताते चलें की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश पर पीडब्ल्यूडी ने बरेली बदायूं सड़क निर्माण में हुए करोड़ों रुपए के घोटाले की जांच की जिसमें उन्होंने विट्यूमिनस पदार्थो की 124 सीआरसी/बिल की लिस्ट उपलब्ध करायी हैं और 24 सीआरसी/बिल भी उपलब्ध कराये है और साथ में लिख कर दिया है की बाकी सभी सीआरसी/बिल्स लोनिवि के पास सुरक्षित हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लोनिवि के पास सभी सीआरसी/बिल्स फर्जी है और फर्जी बिल्स के आधार पर ठेकेदार को विभाग ने सड़क निर्माण का भुगतान कर दिया। इन फर्जी बिल्स को उच्च न्यायालय के आदेश पर क्रियान्वित जाँच में संज्ञान क्यों नही लिया गया, किसके आदेश पर घोटालेबाज को बचाया जा रहा या योगी आदित्यनाथ के शासन को बदनाम करने की शाजिस के तहत उच्च न्यायालय और स्वयं मुख्यमंत्री के आदेश में ऐसा किया गया। इन सभी तथ्यों को छुपाने के लिए कानूनों का निजीकरण किया जा रहा ताकि घोटालेबाजों को बचाया जा सके।

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