नवरात्रि पर खास: किस दिन किस देवी की कैसे करें पूजा

समग्र चेतना डेस्क। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत बुधवार से हो रही है। समग्र चेतना आप सभी के लिए इस आर्टिकल में पंडितों के अनुसार किस दिन किस देवी की पूजा होती है। उन्हें क्या अर्पण करना है। कौन से गृह शांत होते हैं। इसका पूरा विवरण दे रहा है। नवरात्रि के दिनों में आपको सबसे पहले तामसिक आहार और तामसिक विचार से बचना है।
नवरात्रि में लाल या पीले वस्त्र पहनकर पूजा करें। शुभता का रंग पीला और लाल है। नवरात्रि में अगर आप वृत रखते हैं तो भी और नहीं रखते हैं तो भी सुबह शाम 5 मिनट निकालें। वृत न रखने की स्थिति में सिर्फ सुबह शाम दुर्गा दुर्गा शब्द को ही 27 बार या 108 बार जप करिए और दीया जलाइए। नवरात्रि के दिनों अपने दिन पवित्रता लाइएये। नवरात्रि से पहले घर के द्वारा साफ कर लें। मेन दरवाजे और मंदिर के पास लाइट की अच्छी व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि वहां प्रकाश बना रहे।
नवरात्रि के पहले दिन
माना जाता है कि नवरात्रि में हर दिन एक शक्ति मिलती है। पहले दिन स्वास्थ्य की शक्ति प्रवाहित होती है। इस दिन माता की शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होती है। इन्हें शैलपुत्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह पर्वतराज हिमायल की पुत्री हैं इनकी उपासना लाल फूलों से की जाती है। गाय के दूध से बने हुए शुद्ध घी का भोग उन्हें लगाना है। पहले दिन सूर्य गृह को आप अच्छी तरह से साध सकते हैं।
22 मार्च को पहली देवी की पूजा की जाएगी।
दूसरे दिन
इस दिन विद्या, ज्ञान और वैराग्य का वरदान मिलता है। इस दिन माता ब्रम्हचारिणी की पूजा होती है। ये हर समय ब्रम्ह की साधना तपस्या में लीन रहती हैं। इसलिए इन्हें ब्रम्हचारिणी कहा जाता है। सफेद फूलों से इनकी पूजा करनी चाहिए। उन्हें शक्कर का भोग लगाना चाहिए। इनके साथ चंद्रमा गृह जुड़ा है। अगर चंद्रमा संबंधी कोई गृह अशांह है या खराब है तो इनकी पूजा से आपकी समस्याएं दूर हो जाएंगी। 23 मार्च को पूजा होगी।
तीसरे दिन
इस दिन साहस की शक्ति, आत्मविश्वास की शक्ति मिलती है। ताकत, एनर्जी मिलती है। तीसरे दिन चंद्र घण्टा की पूजा होती है। इनके मस्तक पर चंद्रमा के आकार का घंटा होता है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। लाल फूलों से पूजा करें, दूध अर्पित करें या उससे बनी मिठाई का भोग लगाना है। इनकी पूजा से आप अपने मंगल को बेहतर कर सकते हैं। बिगड़ा मंगल बेहतर होगा। 24 मार्च को पूजा होगी।
चौथा दिन
इस दिन ज्ञान के अलावा बुद्धि भी मिलती है। बुद्धि, वाणी और प्रखरता मिलती है। इसके लिए कुष्माण्ड स्वरूप की पूजा होती है मां दुर्गा का चौथा स्वरूप कूष्मांडा है। देवी भागवत के अनुसार कूष्मांडा देवी ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कूष्मांडा पड़ा। जब चारों तरफ अंधकार था तब देवी कूष्मांडा ने ही अपने ब्रह्मा की शक्ति के रूप में अपने उदर से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इन्हें ही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति माना जाता है। सृष्टि की रचना के बाद उसमें प्रकाश भी इन्ही के कारण आया है। इसलिए ही ये सूर्यलोक में निवास करती हैं। हरे वस्तुओं से इनकी पूजा होती है जैसे हरी इलाइची आदि
इस दिन मरकरी यानी बुध को सही कर सकते हैं। 25 मार्च को इनकी पूजा होगी।
पांचवा दिन
इस दिन नवदुर्गा के पंचम स्वरूप से संतान संबंधी समस्याओं का समापन होता है। अगर संतान नहीं है तो प्राप्त होती है अगर संतान से या संतान को तकलीफ है तो वह दूर होती है। इस दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। कार्तकेय की माता होने के चलते इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। पीले फूलों से पूजा और केले का भोग लगाया जाता है। इनका संबंध बृहस्पति के संतान वाले पक्ष से है।
26 मार्च को उपासना होगी।
छठा दिन
इस दिन शीघ्र विवाह का वरदान मिलता है। माता कात्यायनी स्वरूप की पूजा होती है। कात्यायन त्रषि से संबंध से इन्हें कात्यानी कहा गया। पीले फूलों से पूजा करें और शहद का भोग लगाएं। 27 मार्च को पूजा होगी।
सातवा दिन
रोग, शोक और बाधाओं का नाश होता है इसके अलावा नकारात्मक उर्जा जैसे नजर लग गई, तंत्र मंत्र, किसी गृह की दसा आदि से बचते हैं। कालरात्रि स्वरूप की पूजा होती है। ये केवल अपने भक्तों का शुभ करती हैं। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। इनकी पूजा सुगंध और धूप से पूजा होती है। गुण का भोग लगाइए। शनि संबंधी बाधाएं दूर होंगी। 28 मार्च को पूजा होगी।
आठवा दिन
इस दिन महागौरी की पूजा होती है। सुखद वैवाहिक जीवन और मनचाहे विवाह का वरदान मिलता है। इनको गौरी इसलिए कहते हैं क्योंकि जब इन्होंने अपार तपस्या की तो शरीर काला हो गया। शिव जी प्रकट हुए और कमंडल से जल डाला तो ये महागौरी हो गईं। सीता ने भी इनकी पूजा की थी। सफेद फूलों से इनकी पूजा की जाएगी। नारियल का भोग भी लगाया जाएगा। शुक्र गृह को सही करने के लिए इनकी पूजा होती है। 29 मार्च को पूजा होगी।
9वां दिन
यह नवरात्रि का अंतिम दिन होता है ऐसा मानते हैं कि जो लोग आठ दिन पूजा, वृत नहीं करते हैं नवें दिन पूजा कर लेते हैं तो भी नवरात्रि का फल मिल जाता है इसलिए इसको महानवमी कहते हें। हर तरह की कामनाएं पूर्णं होती हैं। इस दिन सिद्धिदात्री की पूजा होती है जितनी शक्तियां है वह इनके पास है। सभी इनमे समाहित हैं। अलग अलग रंग के विभिन्न रंगों के फूलों से पूजा करें। काले तिल से भोग लगाएं। 30 मार्च को पूजा होगी।