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आठवें पड़ाव स्थल जरिगवां पहुंचे परिक्रमार्थी

आज नैमिषारण्य में ठहरेगा रामादल
चित्र परिचय-पड़ाव स्थल पर विश्राम करते परिक्रमार्थी व परिक्रमा करते परिक्रमार्थी।

गोंदलामऊ/सीतापुर। 84 कोसीय परिक्रमा यात्रा का रामादल मंगलवार को सुबह जय श्री राम के जयकारों के साथ आठवें पड़ाव स्थल जरिगवां के लिए रवाना हुआ। भजन कीर्तन करते हुए श्रद्धालु रामादल में शामिल थे। कोई दंडवत करते हुए चल रहा था तो कोई पैदल राम का गुणगान करते हुए मगन था। परिक्रमा मार्ग पूरी तरह आध्यात्मिक माहौल से जगमग दिखा। सातवें पड़ाव मड़रुवा में सोमवार को श्रद्धालु पहुंचे थे। यहां रात्रि विश्राम कर श्रद्धालुओं ने सुबह जरिगवां पड़ाव के लिए कूच किया। मड़रुवा से जरिगवां के बीच श्रद्धालुओं ने 84 कोसी परिक्रमा में आने वाले दर्जनों धार्मिक स्थलों के दर्शन करते हुए जरिगवां पड़ाव पर पहुंचे। परिक्रमा यात्रा में देश, विदेश के श्रद्धालु शामिल हैं। यात्रा का ग्रामीणों ने जगह-जगह स्वागत किया। मड़रुवा से लेकर जरिगवां के बीच लोगों ने भंडारे लगाकर परिक्रमार्थियों को प्रसाद वितरित किया। हाथी, घोड़े और पालकी पर सवार साधु, संत व महात्मागण लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा। मड़रुवा से लेकर जरिगवां तक भंडारे चले। रास्ते में ग्रामीणों ने श्रद्धालुओं के स्नान व विश्राम की भी व्यवस्था की।

पड़ाव स्थल का पौराणिक महत्त्व
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार प्राचीन काल की बात करे तो आज भी श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां पर भगवान श्री रामचन्द्र की बनवास के समय फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि को आये थे यहां पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया था आज भी चौरासी कोसीय परिक्रमार्थियों का कहना है कि यहां पर भगवान श्रीराम बनवास के समय आये थे यही पर स्थित महर्षि माहूं के आश्रम में अपनी पत्नी व भाई के साथ रात्रि विश्राम किया था।महर्षि माहूं का स्थान आज भी महुवा ठाकुर के नाम से जाना जाता है।

सुहाग पिटारी को करती है दान
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मड़रूवा से चलकर मार्ग में विश्केवर, गड़ मुक्तेश्वर, हरिहर, हरिद्वार रूप कुण्ड, कुर्यावर्त कल्लेश्वर आदि स्थानों के दर्शन करते हुए महुवा वन में स्थित मधूम (महुवा) के वृक्ष के नीचे रूकते है। यहाँ पर सुहागिन महिलाएँ इसका विधिवत पूजन करती हैं एवं सुहाग पिटारी एवं सुन्दर वस्त्रों का दान करती हैं।

अहो भाग्य हमारे, जो हम जरिगवां में पधारे
88 हजार ऋषियों की तपोभूमि देश के पवित्र तीर्थाे में से एक ऐसा धर्म स्थल,जिसके दर्शन के बिना पूरा तीर्थाटन अधूरा रहता है। अहो भाग्य हमारे,जो हम जरिगवां में जन्मे, धर्मनगरी से 15 किमी दूर स्थित गोंदलामऊ ब्लॉक के जरिगवां गांव के लोग इससे गौरवान्वित हैं कि उनका गांव 84 कोस परिक्रमा का आठवां पड़ाव है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी लाखो श्रद्धालु परिक्रमा पड़ाव पर पधारे है। यहां वे रात विश्राम करते हैं। कल्याणेश्वर मंदिर के पुजारी संदीप गिरी ने बताया कि हमारा गांव पौराणिक है। इस स्थल का जिक्र वेदों व पुराणों में है।

आज नैमिषारण्य में ठहरेगा रामादल
फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी को परिक्रमा जरिगवाँ पड़ाव से चलकर पुनः नैमिषारण्य आ जाता है. यहाँ पर आकर श्री ललिता देवी, पंच प्रयाग, श्री क्षेमकाया देवी, गोवर्धन नाथ, जानकी कुण्ड, पंचमुखी हनुमान जी, श्री शेषनाथ सूत जी कथा स्थान, राधाकृष्ण, बलदाऊ, अन्नपूर्णा जी, विश्वनाथ,लीलारकूप, तुलसीदास जी, धर्मराज जी, चित्रगुप्त, यमराज पाराशर जी,वेद व्यास जी, शुकदेव जी, स्वायंभू मनु शतरूपा तपस्थली, चौतन्य महाप्रभू, कश्यप ऋषि, काशी राज ब्रह्मवर्त, अयोध्या, गंगोत्री, सप्तऋषि टीला, दशाश्वमेघ घाट, रामजानकी मंदिर,लक्ष्मी नारायण मंदिर, पाँचक पाण्डव, हनुमान जी, वाराह कूप द्रोपदी तथा प्राचीन गुफाओं एवं कन्दराओं के दर्शन कर सायं चक्र तीर्थ की भव्य आरती देख यहीं रात्रि विश्राम करते है।

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