कम लागत कम पूंजी में मशरूम उत्पादन में मिल सकती है अधिक आय

- तीन दिवसीय मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण कार्यक्रम का हुआ समापन
मानपुर/सीतापुर। पिछले कुछ वर्षों में किसानों अथवा युवाओं का रुझान मशरूम की व्यावसायिक खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है। मशरूम की खेती बेहतर आमदनी का जरिया बन सकती है। बस कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। बाजार में मशरूम का अच्छा दाम मिल जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया, सीतापुर में 1 से 3 सितम्बर तक चले तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन के अवसर पर केंद्र के प्रभारी अध्यक्ष डॉ दयाशंकर श्रीवास्तव ने बताया कि कृषि में व्यवसायी करण व विविधिता लाने के लिए इस प्रकार के कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की महती आवश्यकता है।
केंद्र पर प्रत्येक वर्ष बीज उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्त्पादन, बागवानी एवं पशुपालन आदि विषयों पर इस प्रकार के कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाते है। जिसमें प्रतिभागिता के लिए इच्छुक अभ्यर्थी किसी भी कार्य दिवस में केंद्र पर संपर्क करके सम्बंधित विषय में अपना पंजीकरण दर्ज करा सकते हैं।
प्रसार वैज्ञानिक व प्रशिक्षण प्रभारी शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि मशरुम उत्त्पादन कम जोत के किसानों, महिला-स्वयं सहायता समूहों व शिक्षित बेरोजगारों के लिए एक बेहतर आमदनी का जरिया बन रही है, इसी दृष्टिकोण से अलग-अलग स्थानों पर मास्टर ट्रेनर बनाने के उदेश्य से इस केंद्र पर युवाओं व समूह का चिन्हांकन कर उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है। डॉ आनंद सिंह ने आहार व्यवस्था में मशरुम के महत्त्व पर बताया कि मशरूम के पापड़, जिम का सप्लीमेन्ट्री पाउडर, अचार, बिस्किट, टोस्ट, कूकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली आदि बनाए जाते हैं।
डॉ शिशिर कांत सिंह व सचिन प्रताप तोमर द्वारा मशरुम उत्त्पादन हेतु कम्पोस्ट और केसिंग खाद बनाने कि विधि पर विस्तार से जानकारी प्रदान की। प्रगतिशील किसान शिव कुमार पांडेय ने प्रतिभागियों को मशरुम उत्त्पादन हेतु गृह निर्माण, कम्पोस्ट व केसिंग हेतु उन्नत खाद बनाने का प्रयोगात्मक कार्य कराया। डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह ने प्रतिभागियों को मशरूम उत्पादन हेतु स्थान का चयन, कम लागत में हट निर्माण एवं वातावरण प्रबंधन पर जानकारी प्रदान की। प्रशिक्षण कार्यक्रम में जनपद सीतापुर, लखीमपुर के किसानों ने प्रतिभाग कर प्रशिक्षण प्राप्त किया।




