वाल्मीकि कृत रामायण भारतीय साहित्य का बीज है: आचार्य नन्दीलाल

वाल्मीकिकृत रामायण भारतीय साहित्य का बीज है: आचार्य नन्दीलाल
सिधौली/सीतापुर। भगवान वाल्मीकि केवल आदि कवि ही नहीं बल्कि भारत के जीवन्त संस्कृति एवं साहित्यपुरूष हैं। उनके द्वारा रचित रामायण न केवल भारत बल्कि विश्वस्तर की कई साहित्यिक कृतियों का आधार है। यह बात साहित्य परिषद तत्वावधान में सिधौली तहसील के सामने आयोजित भगवान वाल्मीकि एवं अवधी साहित्य के इतिहास के रचनाकार डा0 श्याम सुन्दर मिश्र ‘मधुप’ की जयन्ती पर आयोजित विचार एवं काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि आचार्य नन्दीलाल ’निराश’ ने मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए कही।
उन्होंने डा0 श्याम सुन्दर मिश्र ‘मधुप’ के विषय में बोलते हुए कहा कि डा0 मधुप एक महान कवि, लेखक तथा साहित्य इतिहासकार थे। उन्होंने अवध के बारह जनपदों में लिखे गये साहित्य और रचनाकारों पर शोध करके जो ऐतिहासिक कार्य किया है वह अतुलनीय है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कवि केदारनाथ शुक्ल ने महर्षि वाल्मीकि के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वे कविता के आदि पुरूष हैं और उनकी कविता व्यथा से उत्पन्न हुई है।
कवि जबतक लोगों की व्यथा और दुखदर्द को अपनी लेखनी का विषय नहीं बनायेगा और भोगे हुए यथार्थ को नहीं लिखेगा वह सच्चा रचनाकार नहीं बन सकता। कार्यक्रम के संयोजक अनुराग आग्नेय ने डा0 मधुप के साथ अपने कई संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे एक महान लेखक, साहित्यकार और इतिहासकार के साथ ही साथ एक सरल और सहज व्यक्ति भी थे। कार्यक्रम का संचालन कर रहे अधिवक्ता अनूप कुमार ने महर्षि वाल्मीकि के विषय में कहा कि उनके द्वारा रचित रामायण एक बीज के रूप में कई भाषाओं की महान रचनाओं का आधार बनी। रामचरित मानस जैसे अवधी ग्रंथ का आधार रामायण ही है।
गोष्ठी के पश्चात सम्पन्न हुए काव्य पाठ में नन्दीलाल ‘निराश’, केदारनाथ शुक्ल, राकेश पाण्डेय, प्रमोद मिश्र ‘पंचमेश’ शायर वसी खैराबादी, देवेन्द्र कश्यप ‘निडर’, नवनीत नवल, सूर्यांश शुक्ला, सिद्धान्त अवस्थी आदि ने अपनी रचनाएँ पढ़ी। धन्यवाद ज्ञापन रामनाथ रावत द्वारा किया गया।




