मैं राजा होता तो गुप्तचर को अपना लेता… “त्यागी ऐसे नहीं बनते”

आज मैंने स्वप्न में देखा कि मेरा एक गुप्तचर शहीद होने वाला है…जानें फिर क्या हुआ
…मेरा एक गुप्तचर शहीद होने वाला है। मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरी एक उंगली कट गई है। हालांकि अभी चार बाकी हैं। अगर राजा मैं होता तो गुप्तचरों को शहीद करने के बजाए उन्हें अपने पाले में मिला लेता। अर्थशास्त्र कहता है कि राजा के पास विश्वासपात्र गुप्तचरों का समुदाय होना बेहद जरूरी है। गुप्तचर अति प्राचीन काल से ही शासन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता माना जाता रहा है। मनुस्मृति में भी गुप्तचर का उल्लेख मिलता है। रामायण में कहा जाता है कि रामचंद्र का ‘दुर्मुख’ नामक गुप्तचर हुआ करता था जिससे वो अपनी प्रजा के बारे में जाना करते थे।
कलयुग में गुप्तचरों का हाल
बहरहाल यह कलयुग है यहां मौका मिलते ही गुप्तचरों को भी दांव पर लगा दिया जाता है। हालांकि मैंने यही सीखा कि गुप्तचरों का नाम कभी भूलकर भी जुंबान पर नहीं लाना चाहिए। …पर यहां गुप्तचर को ही भेंट चढ़ा दिया जाता है। उसे सूली पर वही लटकाता है जो उसके दम पर खूब शोहरत हासिल करता है। …जब जी भर जाता है तो उसे एक्सपोज कर दिया जाता है। इतिहास में ऐसे तमाम गुप्तचरों की कहानी मिलती है। लाभ की मीठी चासनी के लिए राजा महाराजा भी गुप्तचरों का गला घोंटते रहे हैं।
पुलिस महकमें में गुप्तचर
एक समय ऐसा था जब पुलिस महकमा गुप्तचरों के भरोसा हुआ करता था। इसके लिए बकायदा फंड तक मिलता था। जब से इस विभाग ने गुप्तचरों का साथ छोड़ा तबसे न सिर्फ वारदातों के खुलासे में कमी आई बल्कि वारदातें भी बढ़ी हैं। कहा ये भी जाता है कि पुलिस महकमें में कई बार गुप्तचरों को भी भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
मेरे स्वप्न वाले उस गुप्तचर से मेरा बस इतना वास्ता है कि उसकी एक गुप्तचरी मेरे भी काम आई थी। …और थोड़ा सा उससे लगाव हो गया था। जबकि जिसके लिए वह डेढ़ दशक तक विश्वास के साथ लगा रहा उसने उसका साथ छोड़ दिया था। इतिहास में गुप्तचरों के साथ ऐसा ही सलूक किया जाता था।
अब ऐसे विश्वासपात्र बहुत कम हैं जो कह सकें कि …हे गुप्तचर मैं अपना 100 प्रतिशत दूंगा। तुम्हें ऐसे जाने नहीं दूंगा। मेरी कोशिश अभी बाकी है। अगर सफलता मिली तो तुम्हारा भाग्य। वरना तुम तो ‘त्यागी’ हो ही जिसके साथ रहे पूरा समर्पण और त्याग किया। वह अलग बात है कि उसी ने तुम्हें अंधेरे में झोक दिया, लेकिन मुझे यकीन है तुम जिसके साथ आगे भी रहोगे विश्वास के साथ रहोगे।
मुस्लिम और मुगलकाल में गुप्तचर
गुप्तचरों का उपयोग संगठित रूप से और विस्तृत पैमाने पर मुस्लिम और मुगलकाल में नहीं हुआ। मुस्लिम और मुगलकालीन पुलिस शासन, जिसकी नींव शेरशाह ने डाली थी, स्थानीय मुखिया, प्रधान अथवा स्थानीय पुलिस अधिकारियों के दायित्वों के सिद्धांतों पर आधारित था। किंतु थोड़ी सी संख्या में शासन के अधिकारियों एवं प्रजाजनों की मनोवृत्तियों तथा कार्यकलापों की सूचना देने के लिये राजा द्वारा अपने विश्वासपात्र और चतुर अनुचरों का प्रयोग मात्र होता रहा।
आका से क्या चाहता है गुप्तचर
हे गुप्तचर! मैं बिकाउ नहीं हूं और नमक हराम भी नहीं, मेरा विश्वास रखना, अपनों से मैं जीत नहीं सकता। मेरी कुछ मजबूरिया हैं, लेकिन जिस राजा की स्याही ने गुमराह होकर तुम्हें जिला बदल की सजा सुनाई है, मेरी कलम की स्याही उससे कभी समझौता नहीं करेगी। वह राजा सबके कल्याण के लिए है, मेरी स्याही भी उसी कल्याण में लगी रहेगी।
गुप्तचर सेवाएं
भारत— रॉ
पाकिस्तान— आई एस आई
ब्रिटेन— एम आई ५, म आई ६
अमेरिका— सी आई ए
सोवियत संघ— के जी बी
इज़राईल— मोसाद
कुछ प्रसिद्ध जासूस
किम फिल्बी, गाय बर्गेस, मॅकलीन,नूर इनायत खान,माता हारी
प्रसिद्ध काल्पनिक जासूस
जेम्स बाँड
कुछ प्रसिद्ध जासूसी काँड
साम्बा जासूसी काँड
किम फिल्बी काँड
मैं राजा होता तो आज गुप्तचर को अपना लेता और अपने पाले में कर लेता, क्योंकि असल राजा वहीं जो छमा भाव रखे, त्याग की भावना रखे। अब राम जैसे त्यागी राजा नहीं रहे…
आज अपनों से छला हुआ महसूस कर रहा हूं। ऐसा लग रहा है जैसे जानबूझकर ईर्ष्या के चलते मेरा नुकसान किया गया।
(ये लेखक के निजी विचार हैं इसका किसी घटना से कोई संबंध नहीं है)




