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बगावती वरुण की डगमगाती सियासत

  • आडवाणी, जोशी से क्यों नहीं सीखते वरुण गांधी
  • हिंदुत्व का दम भरने वाले वरुण अब सेक्युलरिज़्म की ओर

वरिष्ठ पत्रकार एसपी सिंह
सुयश मिश्रा (पत्रकार, शोधार्थी)

लखनऊ। बीजेपी सांसद वरुण गांधी किस नाव में सवार होना चाहते हैं इसको लेकर शायद वह खुद कन्फ्यूज हो गए हैं। या फिर यूं कहें कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वह अपने लिए नई राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिश में हैं। कभी वह कहते हैं कि न तो उन्हें कांग्रेस से परेशानी है और न तो नेहरू से तो कभी वह अखिलेश यादव की तारीफ में कसीदे पढ़ने लगते हैं। अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या वरुण गांधी के बगावती तेवर को बीजेपी अभी और टॉलरेट करेगी या फिर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले वह खुद अपना नया ठिकाना तलाश लेंगे।

हालांकि वरुण गांधी के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर खुद राहुल गांधी ने यह कहकर पूर्णतयः विराम लगा दिया है कि ’मैं उनसे (वरुण गांधी) मिल सकता हूं, गले लग सकता हूं लेकिन मेरी विचारधारा, उनकी विचारधारा से नहीं मिलती। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या वरुण गांधी समाजवादी पार्टी की ओर रुख कर सकते हैं, क्योंकि उनका सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की तारीफ करने वाला हालिया बयान इस ओर इशारा करता है।

वरुण गांधी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में जाना वरुण की राजनीतिक अपरिपक्वता होगी। एक वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के कभी कर्णधार रहे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं से वरुण गांधी को सीख लेनी चाहिए। ये बीजेपी के वो नेता हैं जिनके इशारे के बिना कभी पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता था।

आज ये दोनों नेता मुख्यधारा में नहीं हैं बावजूद इसके पार्टी लीक से कभी बाहर नहीं गये। वहीं वरुण गांधी जिनकी राजनीतिक पृष्टभूमि गांधी-नेहरू खानदान के वारिस के साथ एक लोकसभा सांसद के अलावा कुछ नहीं है। फिर भी वह केंद्र की मोदी सरकार से लेकर योगी सरकार तक को निशाने में लेने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। सियासत में उतार चढ़ाव लाजमी है। वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।

गांधी परिवार के वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी को मोदी सरकार 2.0 में स्थान नहीं मिला। वर्तमान में वरुण गांधी पीलीभीत से और मेनका सुल्तानपुर से सांसद के अलावा पार्टी में भी हाशिए पर हैं। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान भी बीजेपी में दोनों को कोई खास तरजीह नहीं दी गई। वह अलग बात है कि पार्टी 2014 में मेनका गांधी को मंत्री और वरुण को राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और इतिहास में सबसे युवा राष्ट्रीय महासचिव बना चुकी है। बावजूद इसके वरुण खुलकर बार बार पार्टी लीक से हटकर काम करते रहे हैं।

चाहे मामला किसान आंदोलन का हो, लखीमपुर कांड में अपने ही नेता के खिलाफ पोस्ट का हो या फिर आवारा पशुओं का मामला। हर बार पार्टी और शीर्श नेतृत्व के खिलाफ वरुण के बगावती तेवर रहे हैं। कभी वरुण गांधी की बीजेपी में एक कट्टरवादी हिन्दू नेता के रूप में छवि बनकर उभरी थी। राष्ट्रीय हिन्दुत्व का झंडाबरदार रहे वरूण गांधी आज पार्टी के हाशिए पर हैं।

सवाल उठ रहे हैं कि क्या साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान हिन्दू-मुसलमान पर कड़े रुख अपनाकर बयानबाजी करने वाले वरूण आज पार्टी की नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर खुद को एक सेक्युलर नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश में हैं। वरूण गांधी अपने बयानों में अक्सर वही भाषा बोलते दिखाई देते हैं जो विपक्ष बोल रहा है।

मीडिया को आड़े हाथों लेते हुए वह अक्सर ये कहते हैं कि महंगाई और बेरोजगारी बड़ी समस्या है, लेकिन अखबार हो या चैनल सिर्फ जात-पात या हिन्दू-मुसलमान की बातें हो रही हैं। पीलीभीत में एक सभा के दौरान तो उन्होंने ये तक कह दिया कि देश में तोड़ने की राजनीति हो रही है। दरअसल वरुण का बगावती रुख साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से और ज्यादा बढ़ गया। वरुण को साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने टिकट दिया। मां मेनका, बेटे के लिए पीलीभीत सीट छोड़कर बरेली के आंवला लोकसभा चली गईं।

वरुण गांधी और मेनका गांधी दोनों चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद वर्ष 2013 में वरुण गांधी को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। अब बारी आती है, 2014 के चुनाव की। इस बार भी वरुण पीलीभीत से और मेनका गांधी सुल्तानपुर से जीतकर संसद पहुंचीं। मेनका गांधी को केंद्र में मंत्री बनाया गया। इसके बाद साल 2019 में मोदी की 2.0 में मोदी शाह के नेतृत्व में मेनका और वरुण को पार्टी में खास तवज्जों नहीं मिली।

इसी के बाद से वरुण शीर्श नेतृत्व और पार्टी से ज्यादा नाराज हो गए। तब से लेकर अब तक वह गाहे बगाहे पार्टी और शीर्श नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी करते रहे हैं। एक राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। मेनका गांधी की आयु अब लगभग 67 साल हो चुकी है। आगामी चुनाव में उनके टिकट पर भी संदेह हो सकता है। वरुण गांधी पहले से ही पार्टी लीक से हटकर काम करते रहे हैं। ऐसे में बीजेपी में उनके लिए आगे कितनी संभावनाएं बची हैं वरुण इस बात को अच्छी तरह से जान चुके हैं।

हालांकि वह इस बात से भी वाकिफ है कि बीजेपी का सूर्य इतनी जल्दी ढलने वाला नहीं है। साथ ही यूपी में बीजेपी को छोड़कर दूसरे दलों में जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य, राजभर जैसे नेताओं का दूसरे दलों में क्या हाल हुआ। अब देखना यह है कि वरुण बीजेपी की नाव में हाशिए पर रहकर अभी और सवारी करेंगे या फिर अपने लिए नई जमीन तलाशेंगे।

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